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मृत्यु की महामारी में खड़ा जीवन
पहले तो इस छोटी सी कथा को ठीक से समझ लें, क्योंकि कथा में ही सूत्रों के प्राण छिपे हुए हैं। - मनुष्य का मन ऐसा है कि दुख में ही भगवान को याद करता है। सुख हो तो भगवान को भूल जाता है। और दुर्भाग्य की बात है यह। क्योंकि जब तुम दुख में याद करते हो तो भगवान से मिलन भी हो जाए तो भी तुम्हारी बहुत ऊपर गति नहीं हो पाती। ज्यादा से ज्यादा दुख से छूट जाओगे। अगर सुख में याद करो तो सुख से छूट जाओगे और महासुख को उपलब्ध होओगे। जब तुम दुख में याद करते हो तो याद का इतना ही परिणाम हो सकता है कि दुख से छूट जाओ, सुख में आ जाओ। लेकिन सुख कोई गंतव्य थोड़े ही है। सुख कोई जीवन का लक्ष्य थोड़े ही है। जो सुखी हैं वे भी सुखी कहां हैं ! दुखी तो दुखी है ही, सुखी भी सुखी नहीं है। इसलिए अगर सुख भी मिल जाए तो कुछ मिला नहीं बहुत।। ___ जो सुख में याद करता है, उसकी सुख से मुक्ति हो जाती है, वह महासुख में पदार्पण करता है। वह ऐसे सुख में पदार्पण करता है जो शाश्वत है, जो सदा है। सुख तो वही जो सदा हो। सुख की इस परिभाषा को खूब गांठ बांधकर रख लेना। सुख तो वही जो सदा रहे। जो आए और चला जाए, वह तो दुख का ही एक रूप है। आएगा, थोड़ी देर भ्रांति होगी कि सुख हुआ, चला जाएगा और भी गहरे गड्ढे में गिरा जाएगा, और भी दुख में पटक जाएगा।
जो क्षणभंगुर है, वह आभास है, वास्तविक नहीं। वास्तविक तो मिटता ही नहीं, मिट सकता नहीं। जो है, सदा है और सदा रहेगा। जो नहीं है, वह कभी भासता है कि है और कभी तिरोहित हो जाता है। जैसे दूर मरुस्थल में तुम्हें जल-सरोवर दिखायी पड़े। अगर है, तो तुम उसके पास भी पहुंच जाओ तो भी है, तुम उससे जल पी लो तो भी है, तुम उससे दूर भी चले जाओ तो भी है। लेकिन अगर मृगमरीचिका है, अगर सिर्फ दिखायी पड़ रहा है, अगर सिर्फ तुम्हारे प्यास के कारण तुमने ही कल्पना कर ली है, तो जैसे-जैसे पास पहुंचोगे वैसे-वैसे जल का सरोवर तिरोहित होने लगेगा। जब तुम ठीक उस जगह पहुंच जाओगे जहां जल-सरोवर दिखायी पड़ता था, तब तुम अचानक पाओगे, रेत के ढेरों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। तुम्हारी प्यास ने ही सपना देख लिया था। ___प्यास सपने पैदा करती है। अगर तुमने दिन में उपवास किया है तो रात तुम सपना देखोगे भोजन करने का। भूख ने सपना पैदा कर दिया। अगर तुम्हारी कामवासना अतृप्त है तो रात तुम सपने देखोगे कामवासना के तृप्त करने के। क्षुधा ने सपना पैदा कर दिया। गरीब धन के सपने देखता है। अमीर स्वतंत्रता के सपने देखता है। जो हमारे पास नहीं है, उसका हम सपना देखते हैं। और अगर हमारी क्षुधा इतनी बढ़ जाए, प्यास इतनी बढ़ जाए कि हमारा पूरा मन आच्छादित हो जाए उसी प्यास से, तो फिर हम भीतर ही नहीं देखते, आंख बंद करके ही नहीं देखते, खुली