SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृत्यु की महामारी में खड़ा जीवन जब तुम्हारी आंखें आंसू से भरी हैं, तब तुम भगवान को बुलाते हो, द्वार तो अवरुद्ध है। जब तुम्हारे ओंठ मुस्कुराहट से भरे हैं, तब बुलाओ। तब द्वार खुले हैं। तब उस मुस्कुराहट के सहारे तुम्हारे प्रभु का स्मरण तुम्हारी आत्मा तक को रूपांतरित करने में सफल हो जाएगा। सुख में करो याद। जो दुख में करते हैं, दुख से राहत मिल जाती है। प्रभु की स्मृति है, राहत तो देगी। लेकिन जो सुख में याद करते हैं, वे मुक्त हो जाते हैं। इस बात को खयाल में रखना। . वैशाली में पड़ा दुर्भिक्ष, बड़ी महामारी फैली, लोग कुत्तों की मौत मरने लगे, तब घबड़ाए। मृत्यु का तांडव नृत्य, ऐसा कभी देखा न था, सुना भी न था। इतिहास में वर्णित भी न था। सब उपाय किए...। खयाल रखना, आदमी पहले और सब उपाय कर लेता है, परमात्मा अंतिम उपाय है। और जिसको तुम अंतिम उपाय मानते हो, वही प्रथम है। लेकिन तुम उसे क्यू में आखिर में खड़ा करते हो। तुम पहले और सब उपाय कर लेते हो। जब तुम्हारा कोई उपाय नहीं जीतता, तब तुम परमात्मा की तरफ झुकते हो। थके-हारे, इस विचार से कि शायद, अब और तो कहीं होता नहीं, शायद हो जाए। यह आस्था नहीं है-आस्थावान तो पहले परमात्मा की तरफ झुकता है-यह अनास्था है। पहले तुम जाओगे उस दिशा में जिसमें तुम्हारी आस्था है। • समझो कि बीमार पड़े। तो तुम पहले होमियोपैथ के पास नहीं जाओगे, पहले एलोपैथ के पास जाओगे। उसमें तुम्हारी आस्था है। फिर अगर एलोपैथ न जीत सका, तो तुम आयुर्वेद के पास जाओगे, उसमें तुम्हारी थोड़ी सी डगमगाती आस्था है-पुराना संस्कार है। फिर वह भी न जीता, तो तुम शायद होमियोपैथ के पास जाओ। अब तुम सोचते हो, शायद! होमियोपैथ भी न जीते तो फिर तुम शायद नेचरोपैथ के पास जाओ। और जब सब पैथी हार जाएं, तो शायद तुम परमात्मा का स्मरण करो; तुम कहो, अब तो कोई सहारा नहीं, अब तो बेसहारा हूं। अंत में तुम याद करते हो? अंत में याद करते हो, यही बताता है कि तुम्हारी कोई आस्था नहीं। अन्यथा पहले तुम परमात्मा की याद किए होते। पहला मौका तुम उसको देते हो जिसमें तुम्हारी आस्था है। परमात्मा आखिर में हमने रख छोड़ा है। वैशाली के लोग हमसे कुछ भिन्न न थे, ठीक हम जैसे लोग थे। ऐसी घटना कभी घटी या नहीं घटी, इसकी फिकर में मत पड़ना। वैशाली के लोग हम जैसे लोग थे। इसीलिए तो लोग बुढ़ापे में परमात्मा का स्मरण करते हैं, जवानी में नहीं। तब तो सब ठीक चलता मालूम पड़ता है। नाव बहती मालूम पड़ती है। दूसरा किनारा बहुत दूर नहीं मालूम पड़ता। पैरों में बल होता है, अपने अहंकार पर भरोसा होता है; कर लेंगे। खुद जूझने की हिम्मत होती है। फिर धीरे-धीरे पैर कमजोर हो जाते हैं, नाव टूटने-फूटने लगती है, दूसरा किनारा दूर होने लगता है, लगता है मझधार में ही डूबकर मरना है; अपने पर अब भरोसा नहीं रह जाता, अपने सब किए उपाय
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy