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मृत्युबोध के बाद ही महोत्सव संभव अंगूठे का निशान तुम्हारे अंगूठे का निशान नहीं है । और तुम्हारे व्यक्तित्व का ढंग भी तुम्हारा ही है। तुम तुलनीय नहीं हो । तौले कि झंझट में पड़े । तौलो मत। तुलना मत करो, कंपेरीज़न मत करो। तुम जैसे हो, उसे स्वीकार कर लो। तुम जैसे हो, वैसा होना पर्याप्त है। ऐसा तुम्हें प्रभु ने बनाया, इसको तुम धन्यभाग मानो । इसके लिए धन्यवादी होओ। और इस शून्य में राजी हो जाओ। तुमसे फिर बहुत होगा, लेकिन वह अहंकार के कारण नहीं होगा, वह तुम्हारी सहज प्रकृति के कारण होगा ।
जैसे नदियां सागर की तरफ बहती हैं, ऐसा तुमसे भी बहुत बहेगा— हो सकता गीत रचा जाए, मूर्ति बने — होगा ही, क्योंकि जहां ऊर्जा है वहां कुछ घटना घटती रहेगी। लेकिन उस घटना के घटने में न तो चिंता रहेगी, न आपाधापी रहेगी, न दूसरों से प्रतियोगिता रहेगी, न स्पर्धा रहेगी।
अभी तो तुम इस अहंकार के नाम पर सिर्फ अपने भीतर के शून्य को ढांक हो, घाव को ढांकते हो - जैसे घाव पर कोई फूल रख ले। फिर घाव बड़ा होता जाता है तो और बड़े फूल चाहिए, और बड़े फूल चाहिए । फिर धीरे-धीरे ऐसा हो जाता है कि घाव को छिपाने में ही जिंदगी बीत जाती है। घाव छिपता नहीं और जिंदगी समाप्त हो जाती है। और जिससे तुम घाव को छिपा रहे हो, वही तुम्हारी फांसी बन जाती है । किसी को किसी ढंग से अपना अहंकार भरना है, किसी को किसी और ढंग से, अंततः जीवन उसी अहंकार के भरने की कोशिश में नष्ट हो जाता है। I
तुमने यह पुरानी पौराणिक कथा सुनी होगी
एक योगी था वन में। एक चूहा उसके पास घूमा करता। और योगी शांत बैठता, मौन बैठता, तो चूहा - धीरे-धीरे हिम्मत भी उसकी बढ़ गयी - वह उसकी गोदी में भी आकर बैठ जाता, उसके आसपास चक्कर भी लगाता, उसके पास आकर बैठा भी रहता। योगी अपने ध्यान में होता, अपने आसन में बैठता, चूहा भी उसके पास आकर रमने लगा। धीरे-धीरे योगी को भी चूहे से लगाव हो गया ।
एक दिन चूहा बैठा था उसके पास - योगी ध्यान कर रहा था - - और एक बिल्ली ने हमला किया। योगी को चूहे पर बड़ी दया आयी, और अभी-अभी उसे कुछ योग की शक्तियां भी मिलनी शुरू हुई थीं, तो उसने अपने योगबल से कहा— मार्जारो भव । उस चूहे से कहा कि तू बिल्ला हो जा। योगबल था, चूहा तत्क्षण बिल्ला हो गया। चूहा बन - बिलाव बन गया। बिल्ली तो घबड़ा गयी, भाग गयी। योगी बड़ा खुश हुआ। चूहा भी बड़ा खुश हुआ।
लेकिन यह ज्यादा दिन बात न चली कि एक दिन एक कुत्ते ने हमला कर दिया बिल्ले पर । तो योगी ने उसे चीता बना दिया। लेकिन यह बात फिर भी ज्यादा दिन न चली। चीते पर एक दिन एक सिंह ने हमला कर दिया। तो उसने उस गरीब चूहे को अब सिंह बना दिया। सिंह ने योगी पर हमला कर दिया। तब तो योगी बहुत घबड़ाया। उसने कहा यह तो हद्द हो गयी, यह मेरा ही चूहा और यह भूल ही गया !
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