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एस धम्मो सनंतनो
इंच। इससे वह बड़ा पीड़ित था। जब भी किसी लंबे आदमी को देख लेता, उसे बड़ा दुख हो जाता कि मैं कुछ नहीं, यह आदमी लंबा। लेनिन के पैर छोटे थे, ऊपर का शरीर थोड़ा बड़ा था, उसे हमेशा भय लगा रहता कि कोई मेरे पैर न देख ले। पैर उसके इतने छोटे थे कि सामान्य कुर्सी पर बैठता तो जमीन तक नहीं पहुंचते थे। तो वह छिपाकर बैठता था। भाग्यविधाता हो गया रूस का, लेकिन वह अड़चन बनी रही। कोई नंगा भिखारी भी, जिसके पैर स्वस्थ थे, वह भी उसे बेचैन कर जाए। नेपोलियन बेचैन हो जाता था एक नंगे भिखारी को देखकर भी, अगर वह स्वस्थ तगड़ा हुआ और लंबा हुआ। बस वही उसकी अड़चन थी। ___हजार उपद्रव हैं। धन हो, तो कुछ और नहीं होगा तुम्हारे पास। कुछ और हो, तो धन नहीं होगा तुम्हारे पास। धन हो, बुद्धि न होगी तुम्हारे पास; बुद्धि हो, धन न होगा तुम्हारे पास। ऐसा तो कोई आदमी अब तक हुआ नहीं जिसके पास सब हो। सब हो नहीं सकता। यह संभव नहीं है। और अगर ऐसा कोई आदमी होगा तो बाकी लोग उसको तत्काल मार डालेंगे। यह बरदाश्त के बाहर हो जाएगा। __ ऐसे ही बरदाश्त के बाहर हो जाते हैं लोग। जिसके पास ज्यादा धन है, उसके प्रति लोग खिलाफ हो जाते हैं। जो पद पर है, उसके खिलाफ हो जाते हैं लोग। जिसके पास कहीं कुछ है, उसके खिलाफ हो जाते हैं लोग। जिसके पास ज्ञान है, उसके खिलाफ हो जाते हैं। जिसके पास आनंद है, उसके खिलाफ हो जाते हैं। किसी के पास कुछ है, उसमें उनको अड़चन होने लगती है। क्योंकि वह आदमी उनके भीतर की कमी का सूचक हो जाता है कि यह तुम्हारे पास नहीं, जो मेरे पास है।
कोई तुम्हारे पीछे खड़ा है, कोई तुम्हारे आगे खड़ा है, पीछे वाले को देखकर तुम खुश हो रहे हो, आगे वाले को देखकर दुखी हो रहे हो। अहंकार दुख भी देता है, सुख भी देता है, दोनों साथ-साथ देता है।
अहंकार का तुम पूछते भी हो कि क्या है अहंकार, इससे कैसे छुटकारा पाएं, तब भी तुम इस बात को ठीक से नहीं देखते। अक्सर ऐसा होता है, जो लोग पूछते हैं कि अहंकार से कैसे छुटकारा पाएं, वे उतने ही हिस्से से छुटकारा पाना चाहते हैं जितने हिस्से में अहंकार दुख देता है। जितने हिस्से में सुख देता है, उससे नहीं छूटना चाहते हैं। मगर जब तक तुम उससे भी न छूटोगे जिसमें सुख देता है, तब तक तुम उससे भी न छूट पाओगे जिसमें दुख देता है। अहंकार छोड़ने का एक ही अर्थ होता है कि तुमने अपनी तुलना करनी बंद कर दी। अहंकार छोड़ने का एक ही अर्थ होता है कि तुमने अपने शून्यभाव को अंगीकार किया, और उसी शून्यभाव में तुम अद्वितीय हो गए।
तुम्हारी कोई तुलना हो भी नहीं सकती, तुम जैसा आदमी कभी पृथ्वी पर हुआ ही नहीं और न फिर कभी होगा। तुम्हारे अंगूठे का निशान तुम्हारे ही अंगूठे का निशान है। सारी दुनिया में इतने लोग हो चुके हैं-अरबों-खरबों-मगर किसी के
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