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मृत्युबोध के बाद ही महोत्सव संभव
करके दिखाओगे तो ही लगेगा कि तुम हो, नहीं तो तुम्हें लगेगा कि तुम कुछ भी नहीं-खाली-खाली। __ स्कूल जाओ, वहां भी वही महत्वाकांक्षा का पाठ है। सब तरफ महत्वाकांक्षा सिखायी जा रही है। दौड़ो, तेजी से दौड़ो, क्योंकि दूसरे दौड़ रहे हैं, पीछे मत रह जाना। दौड़ भारी है, संघर्ष गहरा है, गलाघोंट प्रतियोगिता है; चाहे गला ही काटना पड़े दूसरे का तो काट देना, मगर कुछ करके बता देना। इस दौड़ में सारा उपद्रव खड़ा हो रहा है। अहंकार है महत्वाकांक्षा। अहंकार है मैं कुछ नहीं हूं, इसकी पीड़ा को भुलाने का उपाय।
मनस्विद कहते हैं कि जिस दिन व्यक्ति यह समझ लेता है कि मैं अगर कुछ नहीं हूं, तो ठीक, बिलकुल ठीक, मैं कुछ नहीं हूं; मैं शून्य हूं तो शून्य हूं, और अपने इस शून्य से राजी हो जाता है, उसी दिन अहंकार समाप्त हो जाता है। ___ इसलिए बुद्ध ने तो बहुत जोर दिया है कि तुम्हारे भीतर शून्य है, उस शून्य से राजी हो जाओ। तुम अपने को शून्यमात्र ही जानो। बुद्ध ने जितनी बड़ी वैज्ञानिक व्यवस्था दी है मनुष्य के अहंकार को गिराने की, किसी और दूसरे ने नहीं दी है। और बुद्ध ने जिस व्यवस्था से यह बात कही है, उतनी तर्कयुक्त व्यवस्था से भी किसी ने नहीं कही है। बुद्ध का प्रस्तावन बहुत बहुमूल्य है। अनेकों ने कहा है अहंकार छोड़ो, लेकिन यह बात अगर इस तरह कही जाए कि अहंकार छोड़ो, तो कुछ लाभ नहीं है। क्योंकि छोड़ोगे कैसे? एक नया अहंकार खड़ा हो जाता है। अहंकार छोड़ने वाले लोग एक नए अहंकार से भर जाते हैं कि हम विनम्र हैं, कि मुझसे ज्यादा विनम्र
और कोई भी नहीं। विनम्रता का भी अहंकार होता है। साधुता का भी अहंकार होता है। निरअहंकारिता का भी अहंकार होता है। अहंकार बड़ी सक्ष्म बात है। __इसलिए बुद्ध ने यह नहीं कहा कि अहंकार छोड़ो, बुद्ध ने कहा, अहंकार समझो। यह तुम्हारे भीतर जो शून्य है, उसको झुठलाने की कोशिश से अहंकार पैदा होता है। तुम भीतर के शून्य को स्वीकार कर लो, कहो कि मैं ना-कुछ हूं। यह असलियत है। यह वृक्षों को कोई अहंकार नहीं है, क्योंकि वृक्षों को अपना ना-कुछ होना स्वीकार है। पहाड़ों को कोई अहंकार नहीं है, क्योंकि उनको अपना ना-कुछ होना स्वीकार है। पक्षियों को अहंकार नहीं। __अहंकार मानवीय घटना है। मनुष्य को अहंकार है। अहंकार दूसरे से तुलना है, कि मैं दूसरे से आगे, कि दूसरे से पीछे। जब तुम दूसरे से आगे होते हो तो अहंकार प्रसन्न होता है। जब तुम दूसरे से पीछे होते हो तो दुखी होता है। और सदा ही कोई तुमसे आगे है, कोई तुमसे पीछे है, यह बड़ी झंझट है। हर आदमी लाइन में खड़ा है। जिसको तुम सोचते हो आगे खड़ा है, उससे भी कोई आगे है। यहां हजार तरह की झंझटें हैं।
नेपोलियन विश्वविजेता था, लेकिन उसकी ऊंचाई कम थी-पांच फीट पांच
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