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एस धम्मो सनंतनो
चुनौती चाहिए। जगाने के लिए विपरीतता चाहिए। जगाने के लिए चोट चाहिए। जगाने के लिए कोलाहल, उपद्रव चाहिए। वहां कोई उपद्रव नहीं है।
तो तुम तंद्रा को या निद्रा को अगर ध्यान समझ लो तो बात दूसरी। बैठ गए एक गुफा में सुस्त, काहिल की तरह, नींद आने लगी बैठे-बैठे-करोगे भी क्या! इस कारण तुम्हारे तथाकथित भगोड़े साधु-संन्यासियों में जीवन की प्रतिभा नहीं दिखायी पड़ती चेहरे पर, आंखों में ज्योति नहीं दिखायी पड़ती। एक सुस्ती, एक आलस्य, एक तंद्रा। मूढ़ता के लक्षण तुम्हें मिलेंगे, बोध के लक्षण नहीं मिलेंगे। तुम्हें कठिनाई से ऐसा मिलेगा साधु जिसमें कि बोध हो-जड़ता मिलेगी क्योंकि भगोड़े में बोध हो कैसे सकता है? बोध ही हो सकता होता तो भागता क्यों?
यह संसार परमात्मा ने तुम्हें दिया, यह कसौटी है, यह परीक्षा है। इससे गुजरोगे तो निखरोगे। यह आग है, जिसमें से गुजर गए तो स्वर्ण बन जाओगे, शुद्ध कुंदन बन जाओगे, तुम्हारा कूड़ा-करकट जल जाएगा। पत्नी को, पति को, बच्चों को, दुकान को, बाजार को अग्नि समझो, कसौटी समझो; इससे भागना नहीं है। ___ हां, सोना भी भागकर बच सकता है अग्नि से, लेकिन तब कूड़ा-करकट भरा रह जाएगा। अग्नि से गुजरने में पीड़ा है, यह मुझे मालूम है। लेकिन पीड़ा में ही निखार है। पीड़ा ही धोती है, पोंछती है, मांजती है। पीड़ा के बिना कोई कभी विकसित हुआ है? पीड़ा ही विकास का द्वार बनती है। सब पीड़ा हट जाए, तुम तत्क्षण मुर्दा हो जाओगे। पीड़ा का उपयोग करो। पीड़ा को उपकरण बनाओ। इसलिए मैं कहता हूं, संसार से भागो मत।। ____ 'आप कहते हैं, संन्यासी को भागना नहीं, जागना है। यह संसार में रहते कैसे हो सकता है! ___ यहीं हो सकता है, और कहीं तो हो ही नहीं सकता। इस छोटी सी बड़ी प्राचीन कथा को सुनो
सम्राट पुष्पमित्र ने अश्वमेध-यज्ञ किया। यज्ञ की पूर्णाहुति हो चुकी थी, रात को अतिथियों के सत्कार में नृत्योत्सव था। जब यज्ञ के ब्रह्मा महर्षि पतंजलि उसमें उपस्थित हुए, तो उनके शिष्य चैत्र के मन में गुरु के व्यवहार के औचित्य के विषय में शंका-शूल चुभ गया।
पतंजलि, योग-सूत्रों के निर्माता। जिन्होंने योग की परिभाषा ही की है: चित्तवृत्ति-निरोध। कि चित्त की वृत्तियों का निरोध हो जाए तो आदमी योग को उपलब्ध होता है। स्वभावतः उनका एक शिष्य चैत्र बड़ी शंका में पड़ गया कि गुरुदेव कहां जा रहे हैं? सम्राट ने उत्सव किया है रात, उसमें वेश्याएं नाचने वाली हैं। योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः! और यह पतंजलि अब तक समझाते रहे कि चित्तवृति का निरोध ही योग है, यह भी वहां जा रहे हैं। तो उसे बहुत शंका-शूल चुभ गया।
उस दिन से उसका मन महाभाष्य और योगसूत्रों के अध्ययन में न लगता था।
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