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________________ मृत्युबोध के बाद ही महोत्सव संभव और सच तो यह है, पत्नी में तो अपने आप धीरे-धीरे रस कम हो जाता है। इसलिए पत्नी के पास स्त्री से मुक्त हो जाना जितना आसान है, उतना नयी स्त्री के पास होकर मुक्त होना उतना आसान नहीं होगा। क्योंकि नयी स्त्री में तो फिर से रस जगता है, फिर जवान हुए, फिर वासनाएं उमगी, फिर पुराने सपने ताजे हुए। पत्नी के साथ तो धीरे-धीरे सब सपने खो गए, धीरे-धीरे सब सपने मर गए, धीरे-धीरे सब आशाएं समाप्त हो गयीं। पत्नी के पास जितनी आसानी से वैराग्य पैदा होता है, और कहीं नहीं होता। इसे तुम पकड़कर रख लो, गांठ बांध लो। पत्नी न हो तो संसार में विरागी न हों। वैराग्य साधु-संतों से पैदा नहीं होता, पत्नी करवा देती है। पत्नी की तुम कृपा मानो, उसके चरण छुओ, वही तुम्हें परमात्म-मार्ग पर लगाती है। उसी के कारण तुम मंदिर की तरफ जाने लगते हो, साधु-संतों का सत्संग करने लगते हो। पत्नी तुम्हें ऐसा घबड़ा देती है! इसको छोड़कर कहां जा रहे हो? इसको छोड़कर तुम गए कि तुम फिर वही मूढ़ता में पड़ जाओगे। बच्चे छोड़ दोगे, राग कहां जाएगा? राग कहीं और बन जाएगा। राग किसी और से बन जाएगा। राग जाना चाहिए। राग के विषय जाने से कुछ भी नहीं होता, राग की वासना जानी चाहिए। और वासना भीतर है। तुम जहां जाओगे, वासना साथ चली जाएगी। वासना तुम हो। वासना तुम्हारे अहंकार का हिस्सा है, तुम्हारे मन का हिस्सा है। वासना के कारण संसार है, संसार के कारण वासना नहीं है। तो कारण को समझो और कारण को काटो। ___ इसलिए मैं कहता हूं, भागो मत, जागो! जागने से कटता है, भागने से नहीं। और भगोड़ा कायर है। और कायर कहीं परमात्मा तक पहंचे हैं। परमात्मा तक सिर्फ दुस्साहसी पहुंचते हैं। खयाल रखना, साहसी भी नहीं कहता, दुस्साहसी! जुआरी पहुंचते हैं, जो सब दांव पर लगाने की हिम्मत रखते हैं। भगोड़े, कायर, ये तो कभी नहीं पहुंचते। डरे-डराए लोग, कंपते पैर, ये परमात्मा तक नहीं पहुंचते, यह यात्रा लंबी है, इस यात्रा में ऐसे डरते लोगों का काम नहीं है। वहां हिम्मतवर लोग चाहिए। तो संसार से भागो मत, हारे हुए संसार से भागो मत, संसार में जागो। फिर मैं तुमसे कहता हूं, यहां जितनी सुविधा जागने की है और कहीं नहीं। संसार का प्रयोजन ही यही है कि यहां इतनी कठिनाइयां हैं, इतनी अड़चनें हैं, कि तुम्हें जागना ही पड़ेगा। चमत्कार तो यही है कि इतनी कठिनाइयों के बावजूद तुम मजे से सो रहे हो और घुर्रा रहे हो! तुम्हारी नींद में दखल ही नहीं पड़ता। यहां बैंड-बाजे बज रहे हैं और शिवजी की बारात चारों तरफ नाच रही है और तुम अपने सो रहे हो, और मजे से सो रहे हो। तुम यहां नहीं जाग रहे, तुम हिमालय पर जागोगे! हिमालय पर बड़ा सन्नाटा है, वहां तो तुम खूब गहरी नींद में सो जाओगे। वहां जगाएगा कौन? जगाने के लिए 165
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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