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एस धम्मो सनंतनो
यह एक परम मूल्यवान सिद्धांत है— जहां सोए हो, वहीं जागोगे ।
हां, सोए-सोए सपने तुम कहीं के भी देखते रहो, मगर जागना तो वहीं होगा जहां सोए हो । पूना में सोए, रात तुम सोचो संसार भर की, सपने देखो कलकत्ते में होने के, कि मद्रास में, कि दिल्ली में, जहां तुम्हारा मन हो, कि चांद-तारों पर, कोई रुकावट नहीं है; न कोई टिकट लगती, न कोई समय लगता, न कहीं आने-जाने में कोई बाधा खड़ी होती, तुम जो चाहो सोचो, सपने में तुम कहीं भी हो सकते हो, लेकिन जब सुबह जागोगे तब पूना में होओगे। जहां सोए थे, वहीं जागना होगा । संसार में सोए हो, तो संसार में ही जागना होगा।
इसलिए मैं कहता हूं, भागो मत। फिर भागकर जाओगे कहां, यह सब तरफ संसार है। इस छोटी सी बात को समझो। तुम अपने घर से छोड़कर भाग गए, तो क्या होगा? किसी आश्रम में बैठ जाओगे। तो आश्रम संसार का उतना ही हिस्सा है। जितना तुम्हारा घर हिस्सा था। दुकान छोड़ दी, बाजार छोड़ दिया, मंदिर में बैठ जाओगे। मंदिर वे ही लोग बनाते हैं जो दुकानें चला रहे हैं। मंदिर बाजार से बनता है। बाजार तो बिना मंदिर के हो सकता है, मंदिर बिना बाजार के नहीं हो सकता।
इसे खयाल में ले लेना। मंदिर बाजार पर निर्भर है, बाजार मंदिर पर निर्भर नहीं है । मंदिर रहे न रहे, बाजार हो सकता है। आखिर रूस में बाजार हैं, मंदिर चला गया। चीन में बाजार हैं, मंदिर चला गया। लेकिन तुमने कहीं ऐसा देखा कि मंदिर हो और बाजार न हो ?
मंदिर बचे और बाजार न हो तो मंदिर खंडहर हो जाता है। मंदिर के प्राण तो बाजार में हैं। मंदिर में जो दीया जलता है, उसकी रोशनी बाजार से आती है। मंदिर पुजारी प्रार्थना करता है, उसके प्राण भी बाजार से आते हैं। मंदिर सब तरफ बाजार से जुड़ा है। भागोगे कहां ? जाओगे कहां? इस पृथ्वी पर कहीं भी जाओ, संसार है। चांद-तारों पर भी चले जाओ, तो भी संसार है। संसार ही है। जो है, उसका नाम संसार है। इसलिए भागना तो हो भी नहीं सकता ।
फिर, कठिनाइयां भीतर हैं, बाहर तो नहीं हैं। बाहर होतीं तो बड़ा आसान था – भाग गए। अभी कृष्ण मुहम्मद यहां बैठे हैं। वह नौकरी छोड़-छोड़कर भागते थे। मैंने कहा, कहां जाते हो ? वह कहते थे, पंचगनी जा रहा हूं। पंचगनी में क्या करोगे? पंचगनी भी संसार है। कृष्ण मुहम्मद को बात समझ में आ गयी कि पंचगनी भी जाकर क्या होगा ! पूना में क्या खराबी है ! यह बात समझने योग्य है।
फिर अड़चनें भीतर हैं, बाहर तो नहीं हैं । तब तो बात आसान हो जाती है, कठिनाई बाहर होती तो बड़ी आसान हो जाती। अड़चन पत्नी में होती तो बड़ी आसान हो जाती है बात, पत्नी छोड़कर भाग गए, झंझट खतम हो गयी। अड़चन तो भीतर है । भीतर स्त्री में रस है । तो तुम यहां से भाग जाओगे, पत्नी छोड़ दोगे, कोई और
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स्त्री में रस पैदा हो जाएगा।
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