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________________ एस धम्मो सनंतनो है, मिल जाएगा। और न भी मिला, तो थोड़ी सी उसकी मांग थी, थोड़ी सी तकलीफ भी होगी; मांग के ही अनुपात में तकलीफ होती है। लेकिन सम्राट का क्या होगा! उसकी मांग तो ऐसी है जो कभी परी हो नहीं सकती। न परी हई तो दख होगा और महादुख होगा, क्योंकि मांग बड़ी है और अगर पूरी हुई तो भी सुख होने वाला नहीं, क्योंकि पूरी हो ही नहीं सकती, इधर राज्य बढ़ा कि उधर मांग बढ़ जाएगी। आदमी के पेट की सीमा है, दो रोटी से भर जाएगी, कि चार रोटी से भर जाएगी, लेकिन आदमी के मन की तो कोई सीमा नहीं है। कितना ही धन हो तो भी मन भरता नहीं। मन भरता ही नहीं। जो नहीं भरता, उसी का नाम मन है। फिर कौन दरिद्र है? जीवन में यह विरोधाभास जगह-जगह प्रगट होता है कि हमने कभी-कभी नग्न लोग देखे जो समृद्ध थे, और हमने बड़े सम्राट देखे जो दरिद्र थे। जिनके पास सब था और कुछ भी न था, ऐसे लोग देखे। और जिनके पास कुछ भी न था और सब था, ऐसे लोग देखे। यह उसी मूल ध्रुवीयता का एक हिस्सा है। तो तुम पूछते हो-जीवन का सत्य मैंने कहा मृत्यु, फिर मृत्यु का सत्य क्या है? मृत्यु का सत्य जीवन। दूसरा प्रश्न भी संबंधित है: क्या सारी पूर्वी मनीषा मृत्युबोध, डेथ कांशसनेस पर ही केंद्रित है? निरंतर मृत्युबोध से जीवन को उत्सवमय कैसे बनाया जा सकेगा? व ही मूल भेद तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है। तुम सोचते हो, मृत्यु की याद करेंगे तो जीवन का उत्सव तो फीका हो जाएगा। तुम सोचते हो, मृत्यु की याद करेंगे तो फिर कैसे हंसेंगे? मृत्यु द्वार पर खड़ी होगी तो फिर हम कैसे नाचेंगे? कैसे गीत गाएंगे? फिर तो वीणा टूट जाएगी। फिर तो पैर रुक जाएंगे, फिर तो घूघर बजेंगे नहीं। तुम सोचते हो, मौत की प्रतीति होगी तो फिर उत्सव कैसे होगा? ___ और मैं दोनों बातें कहता हूं कि मौत की प्रतीति गहरी करो और उत्सव में कमी मत आने देना, तो तुम्हें अड़चन होती है। तुम कहते हो, अगर उत्सव चलाए रखना है तो मौत है ही नहीं, ऐसा मानना जरूरी है। मौत होती ही नहीं, ऐसा मानना जरूरी है। अगर होती भी होगी तो दूसरों की होती है, कम से कम मेरी नहीं होती, ऐसा मानना जरूरी है। और अगर मेरी भी होगी, तो होगी कभी, अभी थोड़े ही हो रही है, ऐसा मानना जरूरी है। मौत को पहले 158
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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