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मृत्युबोध के बाद ही महोत्सव संभव
स्वामी राम अमरीका गए, वह अपने को बादशाह कहते थे। उनके पास कुछ भी न था, दो लंगोटियां थीं। किसी ने पूछा कि दो लंगोटियां हैं आपके पास, किस प्रकार के आप बादशाह हैं? कौन सी दौलत है आपके पास? कौन सा राज्य? स्वामी राम ने कहा, थोड़ी कमी है मेरे राज्य में, ये दो लंगोटियां; ये और छूट जाएं तो मेरा राज्य पूरा हो जाए। इनकी वजह से मेरी सार्वभौमिकता में थोड़ी कमी है। ये दो लंगोटियां मेरी सीमा बनी हैं। मैं बादशाह हूं इसलिए नहीं कि मेरे पास कुछ है, मैं बादशाह इसलिए हूं कि मुझे किसी भी चीज की जरूरत नहीं है।
फर्क समझना, बादशाह के अर्थ ही बदल गए। मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है तो बादशाहत। उसी को किसी चीज की जरूरत नहीं होती, जिसके पास सब है। जिसको जरूरत है. वह तो दरिद्र है। और तुम तब चकित हो जाओगे कि अक्सर ऐसा होता है कि भिखारियों से भी ज्यादा दरिद्र तुम्हारे समृद्ध होते हैं, क्योंकि भिखारी की जरूरतें तो थोड़ी हैं, समृद्ध की जरूरतें बहुत ज्यादा हैं। भिखारी की जरूरतें तो जरा में पूरी हो जाएं, समृद्ध की जरूरतें तो कभी पूरी न होंगी। .. सूफी फकीर फरीद अकबर के पास गया था। फरीद को उसके गांव के लोगों ने कहा था कि अकबर से जरा प्रार्थना करो कि एक मदरसा गांव में खोल दे। तुम्हें इतना मानता है, टालेगा नहीं। तो फरीद गया। सुबह-सुबह जल्दी गया। अकबर नमाज पढ़ता था। फरीद आया तो उसे रुकावट नहीं डाली गयी, उसे अकबर का जो पूजागृह था उसमें ले जाया गया। अकबर हाथ उठाए आकाश की तरफ कह रहा था-हे परमात्मा, हे परवरदिगार, हे करुणावान, हे रहमान, हे रहीम, मुझ पर कृपा कर, मेरे राज्य को बड़ा कर! फरीद ने तो सुना और लौट पड़ा। ___बादशाह ने नमाज पूरी की, लौटकर देखा तो फरीद को जाते देखा-पीठ दिखायी पड़ी-दौड़ा, रोका फरीद को कि कैसे आए, कैसे चले! फरीद ने कहा कि बड़ी आशा से आया था। गांव के लोगों ने मुझसे कहा कि तुमसे कहूं कि एक मदरसा खुलवा दो। फिर इधर तुम्हें मैंने भीख मांगते देखा, मैंने सोचा कि कहां बिचारे गरीब अकबर से कहें, इसकी हालत वैसे ही खस्ता है, खराब है! यह वैसे खुद ही मांग रहा है, अब इससे एक और मदरसा खुलवाना, इसकी और गरीबी बढ़ जाएगी! आए थे सम्राट के पास, देखकर कि तुम दरिद्र हो, लौटे जाते हैं। अकबर ने कहा कि नहीं-नहीं, मदरसा खुलवाने से कुछ अड़चन न होगी। एक नहीं दस खुलवा दूं, बिलकुल फिकर न करो। फरीद ने कहा, अब तो बात ही खतम हो गयी; तुम जिससे मांगते थे, उसी से मांग लेंगे। अब बीच में और एक बिचवैया! तुम भगवान से मांगो, हम तुमसे मांगें, इसमें क्या सार है! जब तुम मांग ही रहे हो, तो तुमसे मांगना ठीक नहीं। अशोभन होगा, अशिष्ट होगा; नहीं, मैं न मांग सकूँगा।
यह ठीक किया फरीद ने। इसमें बड़ी अंतर्दृष्टि है। सम्राट भी मांग रहे हैं। भिखमंगे की तो शायद पूर्ति भी हो जाए—दो रोटी मांगता है, कि एक वस्त्र मांगता
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