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________________ मृत्युबोध के बाद ही महोत्सव संभव अतिरिक्त और कहीं ले भी तो नहीं जाता। कैसे ही जीओ-अच्छे जीओ, बुरे जीओ; साधु की तरह, असाधु की तरह; सज्जन की तरह, दुर्जन की तरह; गरीब की तरह, अमीर की तरह; कैसे ही जीओ, लेकिन सब जीवन मृत्यु में ले जाता है। किसी दिशा से आओ-दौड़ते आओ कि धीमे आओ; पैदल आओ कि घोड़ों पर सवार आओ; कांटे भरे रास्तों से आओ कि फूल भरे रास्तों से आओ-कुछ भेद नहीं पड़ता, आ सभी मृत्यु में जाते हो। अंतिम मंजिल एक है। सब जीवन, सब जीवन-सरिताएं मृत्यु के सागर में गिर जाती हैं। तो जितना जीवन की आकांक्षा होगी, स्वभावतः मृत्यु का भय उतना ही होगा। जो लोग तुम देखते हो मौत से डरे हैं, वे वे ही लोग हैं जो जीवन बचाए रखने को बहुत आतुर हैं। मृत्यु से भयभीत होता हुआ आदमी सिर्फ एक ही खबर देता है कि वह जीवन को पकड़ रखना चाहता है। जीवन को पकड़ रखना चाहता है, मौत हाथ में आती है। जितना जोर से जीवन को पकड़ता है उतनी ही मौत हाथ में आती है और उतना ही वह घबड़ा जाता है। जीवन का सत्य मृत्यु है। .. फिर मैं तुमसे दूसरी बात कहता हूं-मृत्यु का सत्य जीवन है। जो मरने को राजी है, जो मरने का स्वागत करने को तैयार है, जो मरने को कहता है-अभिनंदन, जो मरने को जरा भी घबड़ाया नहीं है, जरा भी भयभीत नहीं है, जरा भी जिसके मन में मृत्यु से कोई दुर्भाव नहीं, जो मृत्यु में ऐसे जाने को तैयार है जैसे कोई मां की गोद में सो जाने को तैयार हो, ऐसे व्यक्ति को महाजीवन का दर्शन हो जाता है। मृत्यु के द्वारा जीवन का अनुभव हो जाता है। मृत्यु का सत्य जीवन है। इसलिए बुद्धों को जीवन का अनुभव होता है। योगियों को जीवन का अनुभव होता है। भोगियों को सिर्फ मृत्यु का अनुभव होता है। यह बात ऊपर से देखे उलटी लगती है। क्योंकि भोगी जीवन चाहता था और हाथ लगती है मौत। और योगी जीवन को छोड़ बैठा, उसने जीवन पर सारी वासना छोड़ दी, उसने जीवन का राग छोड़ दिया, उसे जीवन में कछ रस न रहा, उसे जीवन हाथ लगता है। ऐसा उलटा गणित है। तुम चलोगे जीवन की तरफ, पहुंचोगे मृत्यु में। तुम चल पड़ो मृत्यु में और तुम पहुंच जाओगे महाजीवन में। इसलिए जीसस का प्रसिद्ध वचन है—जो अपने को बचाएंगे वे नष्ट हो जाएंगे, और जो अपने को नष्ट करने को राजी है, वह बच गया। इसे ऐसा कहो-जो बचना चाहेंगे, डूब जाएंगे; और जो डूब गया, वह बच गया। इसलिए योगी मौत का स्वागत करता है, सत्कार करता है। योगी प्रतिपल मौत की प्रतीक्षा करता है। योगी मरने को राजी है। योगी मृत्यु का स्वाद पाना चाहता है। योगी कहता है, देखना चाहता हूं मृत्यु क्या है, पहचानना चाहता हूं मृत्यु क्या है। मृत्यु में उतरना चाहता हूं, मृत्यु की अंधेरी गुफाओं में यात्रा करना चाहता हूं। मृत्यु का अभियान करने को उत्सुक है। 155
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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