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एस धम्मो सनंतनो तो एक अर्थ में तो विपरीत है पृथ्वी पौधे के, क्योंकि एक दिन कब्र बनेगी। और एक अर्थ में मां भी है, क्योंकि बिना पृथ्वी के पौधा हो न सकेगा। ___इस महत्वपूर्ण बात को प्रतीकात्मक ढंग से जैसा भारत में कहा गया है, वैसा कहीं भी नहीं कहा गया। तुमने देखा होगा, काली की प्रतिमा देखी होगी, काली के चित्र देखे होंगे। तो काली अति सुंदर है, पर काली है। सौंदर्य अपूर्व है, लेकिन अंधेरी रात जैसा, अमावस जैसा। काली मां है, मां का प्रतीक है, समस्त मातृत्व का प्रतीक है। मां का अर्थ होता है जिससे सब पैदा हुआ। लेकिन काल मृत्यु का भी नाम है। तो काली मृत्यु का भी प्रतीक है, जिसमें सब लीन हो जाएगा। इसलिए मां काली के गले में आदमी के सिरों की माला है, हाथ में आदमी की अभी-अभी काटी नयी खोपड़ी है, टपकता हुआ रक्त है। यह प्रतीक बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें हमने जीवन और मृत्यु को साथ-साथ खड़े करने की कोशिश की है।
स्त्री जीवन का प्रतीक है—जीवन उससे आता है, भूमि है-और मृत्यु का प्रतीक भी। ऐसी हिम्मत दुनिया में कभी किसी दूसरी कौम ने नहीं की कि मां में मृत्यु देखी हो। मां में जन्म तो सभी को दिखायी पड़ा है, लेकिन भारत की खोज ऐसी है कि जहां से जन्म हुआ वहीं तो मृत्यु होगी न! जहां से आए, वहीं लौट जाना होगा। तो मां जन्म भी है, जन्मदात्री भी और मृत्यु भी है। काली भी है, काल भी है। प्रथम जहां से हम शुरू हुए, अंत में वहीं लौट जाएंगे। एक लहर उठी सागर में, फिर सागर में ही गिरेगी और समाप्त होगी।
तो जीवन और मृत्यु विपरीत हैं हमारे देखे, लेकिन अगर परमात्मा की दृष्टि से देखो तो सहयोगी हैं। जैसे दो पंख न हों तो पक्षी न उड़े, और दो पैर न हों तो तुम न चलो, ऐसे जीवन और मृत्यु दो पैर हैं अस्तित्व के।
तुमने पूछा कि 'जीवन का सत्य, आप कहते हैं, मृत्यु है। फिर मृत्यु का सत्य क्या है?'
स्वभावतः, मृत्यु का सत्य जीवन है।
अब इस बात की गहराई में उतरो। अगर तुम बहुत जीने की आकांक्षा से भरे हो, तो तुम मृत्यु से डर जाओगे; क्योंकि जीवन का सत्य मृत्यु है। अगर जीवेषणा बहुत गहरी है, तो तुम बहुत घबड़ाओगे मौत से; तुम जीना चाहते हो और मौत आ रही है। और मजा यह है कि मौत जीने के सहारे ही आ रही है। जितना जीओगे, उतनी मौत करीब आ जाएगी। ज्यादा जीओगे, मौत और जल्दी आ जाएगी। न जीओ तो मरने से बच भी सकते हो, लेकिन जीओगे तो कैसे बचोगे? जीओगे तो प्रतिपल जो जीवन में गया, वह सीढ़ियां मौत की ही बन रही हैं।
इसलिए जो आदमी जीवन के लिए जितना आतुर है और जितना जीवेषणा से भरा है, सोचता है जीऊं, खूब जीऊं, वह आदमी उतना ही मौत से कंप रहा है। क्योंकि वह देखता है, मौत आ रही है—जीवन का सत्य मृत्यु है। जीवन मृत्यु के
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