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एस धम्मो सनंतनो
अर्थ है। आसन का अर्थ है, आसानी से बैठ जाए, विश्राम से बैठ जाए और फिर बैठा रहे, एक ही आसन में डूबा रहे, शरीर ऐसा हो जाए जैसे मूर्ति, तो उस अवस्था में धीरे-धीरे मन भी ठहर जाता है। जो शरीर में होता है, मन में होता है; जो मन में होता है, शरीर में होता है । शरीर से शुरू करना आसान होगा।
इसलिए बुद्ध कहते हैं, 'एक ही आसन रखने वाला - एकासनं - एक शय्या रखने वाला ।'
बुद्ध कहते हैं, रात भी सोए तो एक ही करवट सोए, ज्यादा करवट भी न बदले, एक ही करवट सोया रहे, ताकि रात भी चित्त न हिले ।
'और अकेला विचरने वाला बने ।'
और धीरे-धीरे दूसरों में रस ही न ले। धीरे-धीरे दूसरे पर जीवित होना छोड़े। धीरे-धीरे अपने को पर्याप्त समझे ।
फिर यह भी ध्यान रहे कि यह एकांत, यह एकासन, यह एक शय्या, यह ध्यान, कहीं यह सब आलस्य का नाम न बन जाए। कहीं ऐसा न हो कि आलसी हो जाए - ऐसा बैठ गए, आलसी हो गए - कि कृत्य खो जाए, जीवन की ऊर्जा खो तो आलस्य को न आने दे, अन्यथा नींद आ जाएगी, समाधि न आएंगी। 'अपने को दमन करे ।'
अपने को दमन करने का जो मौलिक सूत्र है, वह है — एकोदममत्तानं - अत्ता के भाव को नष्ट कर दे। और अहंकार को न पलने दे। तो बुद्ध कहते हैं जो सुभद्दा को हुआ, ऐसा ही तुझे भी हो जाएगा। ऐसा ही सभी को हो जाता है । तब संतपुरुष कहीं भी हों, हिमालय की तरह सामने खड़े हो जाते हैं। श्रद्धा की आंखें खुल जाएं, हृदय के द्वार खुल जाएं, तो संतपुरुष कहीं भी हों, उपलब्ध हो जाते हैं। जो देह में हैं वे तो दिखायी पड़ने ही लगते हैं, जो देह में भी नहीं रहे, वे भी दिखायी पड़ने लगते हैं !
जिसके मन में आज भी बुद्ध के प्रति अपार श्रद्धा है, उसके लिए बुद्ध आज उतने ही प्रत्यक्ष हैं जैसे तब थे। कोई फर्क नहीं पड़ा है। जिन्होंने महावीर को चाहा है और प्रेम किया है— लोभ के कारण नहीं, जन्म के कारण नहीं, जिनकी सच में ही श्रद्धा है— उनके लिए महावीर आज उतने ही सत्य हैं जितने कभी और थे। वैसे क्राइस्ट, वैसे नानक, वैसे कबीर, वैसे जरथुस्त्र, वैसे मोहम्मद । श्रद्धा की आंख हो तो समय और स्थान की सारी दूरियां गिर जाती हैं।
दो ही तो दूरियां हैं - समय की और स्थान की । आज हमसे बुद्ध की दूरी पच्चीस सौ साल की हो गयी, यह समय की दूरी है। उस समय बुद्ध और सुभद्दा में कोई पांच-सात मील की दूरी रही होगी । वह स्थान की दूरी थी ।
लेकिन प्रेम के लिए और ध्यान के लिए न कोई स्थान की दूरी है, न कोई समय की दूरी है। ध्यान और प्रेम की दशा समय और स्थान दोनों तिरोहित हो जाते हैं।
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