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________________ एस धम्मो सनंतनो पास जाता है तो जाता तो इसी तलाश में है कि शायद असली सोना मिल जाए। आदमी झूठ के पास भी जाता है तो सच की ही खोज में जाता है, ऐसी मेरी श्रद्धा है। तुम अगर संसार में भी उलझे हो तो तुम उलझे समाधि के लिए ही हो। तुम सोचते हो, शायद समाधि यहां मिल जाए। शायद सुख यहां मिल जाए, शांति यहां मिल जाए। गलत दिशा में खोज रहे हो जरूर, लेकिन लक्ष्य गलत नहीं है। लक्ष्य तो किसी का भी गलत नहीं है। यहां हम सभी परमात्मा को खोज रहे हैं, हमने नाम अलग-अलग रख लिए हैं—किसी ने परमात्मा का नाम रुपया, किसी ने परमात्मा का नाम पद। स्वभावतः, परमात्मा रुपए में नहीं समा सकता, इसलिए रुपया मिल जाता है और एक दिन हम पाते हैं परमात्मा नहीं मिला। इसमें कुछ भूल हमारी खोज की नहीं थी, दिशा की थी। जाता होगा चमत्कारियों के पास, पाखंडियों के पास, लाता होगा पाखंडियों को घर में इसी आशा में। अनजानी, अचेतन में घूमती हुई यही अभीप्सा रही होगी। और जब सत्य खड़ा हो गया सामने आकर तो मिथ्या से श्रद्धा हट जाए इसमें आश्चर्य क्या है! सत्य को अपने समर्थन के लिए किन्हीं सिद्धियों, किन्हीं रिद्धियों, किन्हीं चमत्कारों की कोई जरूरत नहीं है, सत्य अपने में काफी है, पर्याप्त है। असत्य को चमत्कारों की जरूरत है। असत्य बिना चमत्कारों के खड़ा ही नहीं हो सकता। असत्य लंगड़ा है, उसे चमत्कार की बैसाखियां चाहिए। सत्य के तो अपने ही पैर हैं, उसको किसी का सहारा नहीं चाहिए। तो मैंने कथा का अंत ऐसे किया है कि बुद्ध की सरलता, उनकी शून्यता, उनकी समाधि की गंध, उनकी करुणा! एक युवती की पुकार पर मीलों तक उनका चलकर आना, पसीने से लथपथ, धूल से भरे रहे होंगे-आकाशमार्ग से तो आए नहीं थे, जमीन से आए थे। नंगे पैर चलते थे बुद्ध-एक युवती की पुकार पर इतनी दूर चलकर आना, ऐसा उनका अनुग्रह, इस सबने छू लिया होगा ससुर के हृदय को, इससे वह रूपांतरित हुआ था। सूत्र तो सीधे साफ हैं। 'संत दूर होने पर भी हिमालय की, पर्वत की भांति प्रकाशते हैं।' आंख हो तो संत कितने ही दूर हों, तो भी दिखायी पड़ते हैं। आंख न हो तो पास भी हों, तो दिखायी नहीं पड़ते। और संत कितने ही दूर हों तो भी हिमालय की तरह प्रकाशते हैं, बस श्रद्धा का द्वार खुला हो। 'और असंत तो पास होने पर भी रात में फेंके बाण की तरह दिखलायी नहीं देते।' मगर खयाल रखना, असंतों को असंत दिखलायी देते हैं, संतों को संत दिखलायी देते हैं। जैसे को वैसा दिखलायी देता है। समान समान को आकर्षित करता है। एक ही आसन रखने वाले बनो, इसलिए बुद्ध ने कहा। शायद पूछा होगा 148
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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