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________________ लोभ संसार है, गुरु से दूरी है और इस दुनिया को भी न जंचेगी। दुनिया बहुत आगे आ गयी है, बचकानी बातें अब बहुत अर्थ नहीं रखती हैं। हमें शास्त्रों में से बहुत कुछ काटकर फेंक देना है। जो-जो अवैज्ञानिक मालूम पड़े, काटकर फेंक देना है। हां, काव्य को बचा लो, लेकिन विज्ञान के विपरीत नहीं जाना चाहिए काव्य । काव्य विज्ञान के ऊपर जाए, चलेगा, विपरीत न जाए। विज्ञान विरोधी न हो, विज्ञान सहयोगी हो । तो काव्य को मैं बचा लेता हूं सदा, अविज्ञान को काट देता हूं। फूल गए, तो यह बात विज्ञान के विपरीत हो जाएगी। लेकिन सुगंध गयी, यह काव्य है । इतनी छुट्टी हम कविता को दें। क्योंकि इतनी कविता भी मर जाए तो जीवन में सब रहस्य मर जाता है। सुगंध गयी इसका केवल मतलब ही इतना है, स्थूल कुछ भी न गया, सूक्ष्म गया। यह प्रतीक है। इसलिए मैंने फूल वहीं गिरा दिए। बुद्ध मुझसे प्रसन्न होंगे, बौद्ध मुझसे नाराज होंगे । तीसरी बात, कथा कहती है कि सुभद्दा का नगर कई योजन दूर था। वह बात भी मैंने बदल दी है, मैंने कहा, कुछ मील दूर था। क्योंकि फिर दूसरे दिन बुद्ध को भी पहुंचाना है न! कथा तो कहती है, बुद्ध आकाशमार्ग से गए। पांच सौ भिक्षुओं को लेकर आकाशमार्ग से उड़े और पहुंच गए क्षणभर में । इस तरह की फिजूल बातों में मुझे जरा भी रस नहीं है । तो कई योजन मैंने काट दिया, थोड़े से दूर, कुछ मील, चले होंगे सुबह दो-चार-पांच मील, पहुंच गए होंगे। चलकर ही गए। आकाशमार्गों में मेरी बहुत निष्ठा नहीं है। पृथ्वी के मार्ग काफी प्यारे हैं, आकाशमार्ग से जाने की कोई जरूरत भी नहीं है । और पांच सौ भिक्षुओं को लेकर जाना जरा बेहूदा भी लगेगा ! और ऐसे लोग उड़ें! आकाश से जाएं आएं ! लेकिन कथा तो क्षुद्र बुद्धि से निकलती है । वह चमत्कार दिखलाना चाहते हैं 1 तो कथा यह भी कहती है कि जब बुद्ध पहुंचे पांच सौ भिक्षुओं को लेकर आकाशमार्ग से, तो सुभद्दा का ससुर और पति और सास और सारा परिवार एकदम चरणों में झुक गया। ऐसा चमत्कार तो देखा नहीं था । न केवल यह, उनका पूरा नगर भी तत्क्षण बुद्ध से दीक्षित हुआ। अगर चमत्कार से दीक्षित हुए तो बुद्ध से दीक्षित हुए ही नहीं । इसलिए कथा का अंत मैंने ऐसा किया है— दूसरे दिन भगवान ने मीलों की यात्रा की। चूलसुभद्दा का निमंत्रण था, यह यात्रा करनी ही पड़ी। रास्ता कई मील का था, थक भी गए होंगे, लेकिन जब प्रेम पुकारे तो चलना ही होता है। भगवान का पहुंचना । कोई चमत्कार तो नहीं घटे, लेकिन भगवान का पहुंचना ही बड़े से बड़ा चमत्कार है। उनकी मौजूदगी, उनकी उपस्थिति बड़ा चमत्कार है। उनकी सरलता, उनकी सहजता, प्रेम के साथ चलने की उनकी क्षमता, उनकी करुणा, उनकी समाधि । बुद्ध की सरलता ने, उनकी समाधि ने सुभद्दा के ससुर को छू लिया । सच में इसी की तो तलाश में था सुभद्दा का ससुर भी । आदमी चमत्कारी के भी 147
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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