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एस धम्मो सनंतनो हैं, जितने बुद्ध। न बुद्ध ने कोई चमत्कार किए हैं, न महावीर ने कोई चमत्कार किए हैं। अगर कोई चमत्कार हुए हैं तो हुए हैं, किए किसी ने भी नहीं।
इसलिए जिन्होंने कथा लिखी है-शिष्यों में तो विवाद चलते ही रहते हैं; बुद्ध के शिष्य और महावीर के शिष्य जगह-जगह लड़ते थे, चौराहे-चौराहे पर लड़ते थे, उनमें भारी विवाद थे, वे एक-दूसरे की निंदा करते थे; शिष्यों की समझ कितनी! कथा भी शिष्यों ने लिखी है, तो नासमझी उसमें भरी है। इसलिए मैंने महावीर का श्रावक था सुभद्दा का ससुर, वह बात अलग कर दी है।
अगर महावीर का भक्त होता तो पाखंडियों का भक्त हो ही नहीं सकता था। दो में से एक ही हो सकता है, या तो पाखंडियों का भक्त रहा हो, या महावीर का भक्त रहा हो। और मेरे सामने दो ही विकल्प थे, या तो महावीर का भक्त मान, पाखंडियों का भक्त न मानूं, लेकिन तब कहानी में कोई अर्थ ही न रह जाएगा, क्योंकि जिसने महावीर को पहचान लिया उसने बुद्ध को भी पहचान ही लिया। ये दोनों ही भीतर बिलकुल एक जैसे हैं। शायद बाहर का रूप-रंग अलग हो, मगर बाहर के रूप-रंग की बात ही कहां हो रही है। बात तो भीतर की हो रही है। भीतर महावीर और बुद्ध का स्वाद बिलकुल एक जैसा है, उसमें रत्तीभर फर्क नहीं है।
तो अगर मैं पाखंडियों का हिस्सा अलग कर देता और कहता कि महावीर का भक्त है, तो पूरी कहानी खराब हो जाती, फिर कहानी में कोई मतलब ही नहीं रह जाता। इसलिए मैंने महावीर का भक्त था, यह बात अलग कर दी है।
दूसरी बात, कहानी कहती है कि चूलसुभद्दा ने तीन मुट्ठी फूल फेंके, वे आकाश में तिरोहित हो गए। पहुंचे तीर की तरह बुद्ध के ऊपर, छतरी बनकर खड़े हो गए, आकाश में अधर में लटक गए। वह बात भी मैंने अलग कर दी है। क्यों? स्थूल का चमत्कार अर्थहीन है। इसलिए मैंने इतनी ही बात रखी है—फूलों की सुगंध पहुंची। सूक्ष्म पहुंचा, स्थूल तो गिर जाता है, स्थूल कहां जाता है। सूक्ष्म की अनंत यात्रा है। चमत्कार सूक्ष्म में होते हैं, स्थूल में नहीं। उसका निवेदन पहुंचा, उसकी प्यास पहुंची, उसकी पुकार पहुंची, उसकी श्रद्धा की सुगंध पहुंची। मगर फूल पहुंचे, इस तरह की अवैज्ञानिक बात मैं नहीं कहना चाहता।
लेकिन भक्तों को तो अतिशयोक्ति करने की होड़ होती है। असल में भक्त तो यह सिद्ध करने की चेष्टा कर रहे हैं कि बुद्ध और भी बड़े चमत्कारी थे। वे जो पाखंडी आते थे, उनसे बड़े चमत्कारी थे। भक्तों की चेष्टा तो यह रहती है कि वह चमत्कार करने वाले जो पाखंडी थे, वे तो छोटे-मोटे चमत्कारी थे, बुद्ध महाचमत्कारी थे, देखो फूल भी पहुंच गए! और छोड़ो बुद्ध की, बुद्ध की श्राविका का चमत्कार देखो! बुद्ध तो दूर, बुद्ध की भक्त सुभद्दा का चमत्कार देखो!
तो कथा में चमत्कार को ही जिताने-हराने की चेष्टा है। वह बात मुझे कभी जंचती नहीं। वह बात मैंने अलग कर दी।
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