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लोभ संसार है, गुरु से दूरी है
वे फूल वहीं गिर पड़े। ससुर और उसका सारा परिवार इस पागलपन पर हंसा। कहा कि जब फूल ही गिर गए तो संदेश क्या पहुंचेगा!
सोचा होगा उन्होंने, फूल फेंके तो फूल जाएंगे आकाश के मार्ग से, जाएंगे बुद्ध को संदेश लेकर। अगर यह घटना घटी होती तो वे भागकर बुद्ध के चरणों में खुद गए होते। लेकिन चूलसुभद्दा ने उनके हंसने की जरा भी चिंता न की। वह तो स्वागत की तैयारियों में लंग गयी, कल भगवान आएंगे, पांच सौ भिक्षु आएंगे। ऐसी श्रद्धा होती है। वह तो इसने बात ही खतम हो गयी, कह दिया, निवेदन कर दिया, अब बात खतम हो गयी, अब और क्या करने को है। वह तैयारी में लग गयी। वह तो पागल की तरह दौड़ती रही होगी, दिनभर उसने तैयारियां की होंगी, पांच सौ भिक्षुओं का भोजन बनाना है, भगवान पहली दफा आएंगे, उनका भोजन बनाना है। ___अब दृश्य बदलें, चलें जेतवन। भगवान बोलते थे, अचानक बीच में रुक गए
और बोले-भिक्षुओ, जुही के फूलों की गंध आती है? । ___शायद किसी को भी न आयी हो, शायद सिर्फ बुद्ध को ही आयी हो, क्योंकि कहानी कुछ कहती नहीं कि किसी ने कहा कि हां, हमें भी आती है।
और उन्होंने उग्रनगर की ओर आंखें उठायीं। तभी अनाथपिंडक ने खड़े होकर कहा-चूलसुभद्दा के पिता ने, वह उसका गांव था-भंते, कल के लिए मेरा भोजन स्वीकार करें। बुद्ध ने कहा-क्षमा करो गृहपति, मैं निमंत्रण स्वीकार कर चुका। तुम्हारी बेटी चूलसुभद्दा का निमंत्रण मैंने स्वीकार कर लिया है। कल तो मुझे वहां जाना होगा। उसने जुही के फूलों की गंध के साथ अभी-अभी आमंत्रण भेजा है। तुम्हें गंध नहीं मालूम होती? कैसी जुही के फूलों की गंध चारों तरफ भर गयी है!
शायद उसे भी गंध का पता न चला हो। अनाथपिंडक ने चकित होकर कहा-भंते, चूलसुभद्दा यहां से मीलों दूर, वह कैसे आपको निमंत्रित की है! तो भगवान ने कहा-गृहपति, दूर रहते हुए भी सत्पुरुष सामने खड़े होने के समान प्रगट होते हैं, प्रकाशित होते हैं। मैं अभी सुभद्दा के सामने ही खड़ा हूं। श्रद्धा बड़ा सेतु है, वह समय और स्थान की सभी दूरियों को जोड़ देता है। वस्तुतः श्रद्धा के आयाम में समय, स्थान का अस्तित्व होता ही नहीं। अश्रद्धालु पास होकर भी दूर और श्रद्धालु दूर होकर भी पास होते हैं।
देखा, अभी-अभी वज्जीपुत्त की कथा हमने पढ़ी। वह पास था और दूर था। और अब हम पढ़ते हैं कथा सुभद्दा की-दूर है और पास है। तब उन्होंने ये सूत्र कहे थे।
सूत्र के पहले तीन बातें, जो मैंने इस कहानी में फर्क की हैं, वह तुम्हें निवेदन कर दूं।
पहली बात, कथा कहती है कि उग्गत सेठ जिन-श्रावक था। वह महावीर का भक्त था। यह बात मैंने अलग कर दी। क्योंकि महावीर उतने ही चमत्कारों के पार
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