________________
एस धम्मो सनंतनो
एक मित्र ने मुझे पत्र लिखा कि उनकी पत्नी सत्य साईंबाबा को मानती है... और वह मुझे मानते हैं। उनका पत्र आया है कि एक चमत्कार हो गया । सत्य साईंबाबा की फोटो से राख गिरती है। तो उनकी पत्नी ने कहा कि - किसी दिन हो गया होगा विवाद – तो उनकी पत्नी ने कहा कि तो तुम्हारे भगवान की फोटो से राख गिरे, तो मैं मानूं । जिद्द चढ़ गयी होगी पति को भी। यह मामला अहंकार का, पति-पत्नी के अहंकार का मामला। तो उन्होंने भी फोटो मेरी रख दी होगी। मेरे पास पत्र आया कि बड़ी हैरानी की बात है, दूसरे दिन राख गिरी। आपके फोटो से भी राख गिरी। आप क्या कहते हैं ?
तो मैंने उन्हें लिखा कि पत्नी न केवल साईंबाबा के फोटो से राख गिरा रही है, वह मेरी फोटो से भी राख गिरा रही है, तुम पत्नी से सावधान ! मेरा इसमें कोई हाथ नहीं है।
पत्नी ने ही आखिर पति पर दया की होगी, सोचा होगा कि अब बात ज्यादा बिगड़ जाएगी, तो रात उस मेरी फोटो पर भी छिड़क आयी होगी राख । जैसा साईंबाबा की पर छिड़कती रही, उसने - पत्नियां हैं, दयालु होती हैं - उसने सोचा होगा, अब पति की भी इज्जत बचाओ। मगर पति इससे बड़े चमत्कृत हैं।
हमारी बुद्धियां छोटी हैं, हमारी बुद्धियां ओछी हैं। यह बात उनको बहुत जंची कि राख गिरी। अब राख गिरने से होगा भी क्या ! समझो कि गिरी, तो भी क्या होने वाला है? इसका कोई भी तो मूल्य नहीं है, दो कौड़ी की बात है। मगर हमारे मन दो कौड़ी के हैं। और हमारे मन इस तरह की क्षुद्र बातों में बड़ा रस लेते हैं।
तो पूछा सुभद्दा के ससुर ने कि देखें क्या चमत्कार है उनमें ? देखें क्या रिद्धियां - सिद्धियां हैं?
अब बुद्ध में रिद्धियां - सिद्धियां होती ही नहीं । बुद्धपुरुष का अर्थ ही होता है, जो रिद्धि-सिद्धि के पार हुआ। बुद्धत्व तो आखिरी बात है । बुद्धत्व में कोई चमत्कार नहीं होते। क्योंकि बुद्धत्व महाचमत्कार है।
किसी ने झेन फकीर बोकोजू से पूछा, तुम्हारा चमत्कार क्या है? तो उसने कहा, जब मुझे भूख लगती है, भोजन कर लेता; जब नींद आती तो सो जाता; जब नींद खुल ती तो उठ आता, यही मेरा चमत्कार है। उन्होंने कहा, यह भी कोई चमत्कार है!
मगर बोकोजू ठीक कह रहा है। वह कह रहा है, सब सरल हो गया है। सब बालसुलभ हो गया है। जब भूख लगी, रोटी खा ली; जब नींद आ गयी, सो गए; सब सरल हो गया है। वह बड़ी अनूठी बात कह रहा है। बुद्धपुरुष तो सरल होते हैं।
चूलसुभद्दा ने ससुर की ऐसी बात सुन जेतवन की ओर प्रणाम करके, आनंद आंसुओं से भरी हुई आंखों से कहा - भंते, कल के लिए पांच सौ भिक्षुओं के साथ मेरा भोजन स्वीकार करें। मुझे भुला तो नहीं दिया है न! और मेरी आवाज तो आप तक पहुंचती है न! और फिर उसने तीन मुट्ठी जुही के फूल आकाश की ओर फेंके।
144