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________________ एस धम्मो सनंतनो समुद्र में चल रहे हैं। उस बूढ़े वजीर ने देखा और उसने कहा कि नहीं महाराज, जहाज तो दो ही हैं। सम्राट बोला, दो ? आपकी आंखें तो ठीक हैं न ! उम्र ने कहीं आंखें तो खराब नहीं कर दीं ? नहीं, उसने कहा कि दो ही जहाज हैं - यश और भोग। बाकी सब जहाज तो ठीक ही हैं, बाकी उन्हीं के कारण चल रहे हैं। अगर इन सब जहाजों को बांटा जाए तो दो कतारों में बंट जाएंगे, कोई यश के लिए चल रहा है, कोई धन के लिए चल रहा है। दुनिया में दो ही तो महत्वाकांक्षाएं हैं - एक धन की महत्वाकांक्षा और एक पद की महत्वाकांक्षा। दुनिया में दो ही तो राजनीतियां हैं - एक पद की राजनीति, एक धन की राजनीति | 'इन दो से जो मुक्त है', बुद्ध कहते हैं, 'वह जहां भी जाता है, सर्वत्र पूजित होता है।' यह बड़ी अनूठी बात है। जो यश के भाव से मुक्त है, उसे यश मिलता। जिसे यश की आकांक्षा नहीं, उसे यश मिलता। और जिसे भोग का कोई खयाल नहीं रहा, उसे परम भोग उपलब्ध होता है। उस पर भोग की वर्षा हो जाती है। - द्वितीय दृश्य भगवान के श्रावक अनाथपिंडक सेठ की लड़की चूलसुभद्दा का विवाह उग्रनगरवासी उग्गत सेठ के पुत्र से हुआ था । उग्गत सेठ मिथ्या - दृष्टि था। वह पाखंडियों का आदर करता था। धर्म में नहीं, चमत्कारों में उसकी श्रद्धा थी। सो मदारियों और जादूगरों और धूर्तों का उसके घर में बड़ा सम्मान था। इन तरह-तरह के ढोंगियों के आने पर वह चूलसुभद्दा को भी उन्हें प्रणाम करने के लिए कहता था। वह सम्यक दृष्टि युवती इन तथाकथित साधुओं, संतों और महात्माओं के पास जाने में झिझकती थी और किसी न किसी तरह टाल जाती थी। - जिसने बुद्ध के चरणों में सिर रखा हो, फिर हर किसी के चरणों में सिर रखना कठिन हो जाता है। और इसमें कुछ आश्चर्य भी नहीं । जिसने कोहिनूर जाना हो, फिर उसे कंकड़-पत्थर नहीं लुभा सकते हैं। लेकिन उसका यह व्यवहार उसके ससुर को कष्टकर होने लगा। उसके पति को भी कष्टकर होने लगा, उसकी सास को भी कष्टकर होने लगा। वह सारा परिवार ही पाखंडियों के जाल में था। उनके अहंकार को चोट लगती थी। उन्हें यह बात ही बहुत कष्टकर मालूम होती थी कि उनके महात्मा पाखंडी हैं। यह बात उनके बरदाश्त के बाहर होने लगी। एक दिन वह आगबबूला हो उठा और क्रोध में सुभद्दा से बोला- तू सदा हमारे साधुओं का अनादर करती है, सो बुला अपने बुद्ध को और अपने साधुओं को, हम भी तो उन्हें देखें! देखें क्या चमत्कार हैं उनमें ! और देखें क्या रिद्धियां-सिद्धियां हैं ! 140
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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