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लोभ संसार है, गुरु से दूरी है
से बचेगा? धोखा देना ही जिसकी कुशलता है, धोखा देना ही जिसके जीवन का सारा सार-संचय है, वह बचेगा भी कैसे? वह तो गुरु को भी धोखा देता है। लेकिन गुरु तो दर्पण है; जो तुम्हारे भीतर उठता है, वह गुरु के भीतर घट जाता है। जो मेघ तुम्हारे भीतर घुमड़ते हैं, उनकी छाया गुरु के भीतर पड़ने लगती है। जो सपने तुम्हारे भीतर उठते हैं, गुरु को उनकी गंध लग जाती है, उनकी पगध्वनि सुनायी पड़ जाती है। __ सोचा-मैंने अपनी बात तो किसी को कही भी नहीं है। शायद कुछ और कारण होगा। लेकिन फिर बुद्ध ने सारी कथा कही। उसके मन का सारा राज कहा, विस्तार से सारी बातें कहीं। एक-एक रंग-ढंग जो उसके मन में उठा था और उसके मन ने, शैतान ने उसे जो-जो बातें समझायी थी, वह भी सब कहीं। उस दिन उसकी आंखें खुलीं। उस दिन उसे समझ में आया वह किसके पास है। ___पास रहकर भी अब तक समझ में न आया था। आज पहली दफे बुद्ध की करुणा प्रगट हुई। बुद्ध की दृष्टि प्रगट हुई। और बुद्ध की चिंता उसके लिए, बुद्ध का प्रेम उसके लिए। अब तक तो शायद कई बार यह भी सोचा होगा कि बुद्ध औरों की तो फिक्र करते हैं, मेरी कोई फिक्र नहीं करते। वर्षों हो गए, पता नहीं मेरी याद भी करते हैं कभी? मुझे कभी बुलाया भी नहीं, मेरी तरफ कभी ध्यान भी नहीं दिया, इतनी तो भीड़ है शिष्यों की, इसमें कहां वज्जीपुत्त की याद होगी! क्रोधित भी हुआ होगा। मन में नाराज भी हुआ होगा। कई बार सोचा भी होगा कि क्या रखा है यहां रहने में जहां अपनी कोई चिंता करने वाला नहीं! घर था तो कम से कम मां फिक्र करती थी, पिता फिक्र करते थे; बच्चे फिक्र करते बूढ़ा हो जाता, यहां तो कोई फिक्र करने वाला दिखायी नहीं पड़ता-और बुद्ध तो अलिप्त हैं, दूर हैं, बहुत दूर हैं। आज पहली दफे उसे लगा कि अलिप्त में भी करुणा होती है। जो दूर है, उससे भी, जो भटके हैं उनके लिए चिंता उठती है।
निश्चित ही अपने दुख से बुद्ध मुक्त हो गए हैं, लेकिन जिस दिन कोई व्यक्ति अपने दुख से मुक्त हो जाता है, उस दिन सभी का दुख उसे दिखायी पड़ने लगता है। अपनी कोई चिंता नहीं बची है, लेकिन जिस दिन अपनी चिंता नहीं बचती, उस दिन सारे संसार की चिंता सालने लगती है। अपनी तरफ से तो आ गए मंजिल पर, लेकिन मंजिल पर आते ही एक बड़े उत्तरदायित्व का जन्म हो जाता है। और वह उत्तरदायित्व यही है कि जो पीछे भटक रहे हैं और टटोल रहे हैं, उनको राह दिखाओ।
बुद्ध के जीवन में कथा है कि जब वह मरे और स्वर्ग के द्वार उनके लिए खुले, तो वह द्वार पर ही खड़े रह गए, पीठ करके खड़े रह गए। द्वारपाल ने कहा, आप प्रभु भीतर आएं। हमने स्वागत की तैयारियां की हैं। जन्मों-जन्मों में कभी, अनंत-अनंत युगों में कोई बुद्ध होकर आता है। सारा स्वर्ग सजा है, अप्सराएं नाचने को तैयार हैं, देवता संगीत वाद्य लिए उत्सुक हैं, फूल बरसाने की तैयारियां हैं, सारा स्वर्ग सजा है, आप भीतर आएं। आप उस तरफ मुंह करके क्यों खड़े हो गए हैं? बुद्ध
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