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लोभ संसार है, गुरु से दूरी है
भगवान के विहार-स्थल महावन तक आ रही थीं।
महावन वैशाली के बाहर था-नगर के बाहर, नदी के उस पार। नगर के उत्सव की लहरें। नगर में जले होंगे दीप, दिवाली थी नगर में, युवक-युवतियां सजकर निकले थे, सब तरफ नाच था, सब तरफ मस्ती थी, उस रात जैसे संसार में कोई दुख नहीं था।
बुद्ध की स्वर-लहरियां तो सुनायी नहीं पड़ी थीं वज्जीपुत्त को, लेकिन वैशाली की ये स्वर-लहरियां सुनायी पड़ीं। बुद्ध का सुख तो नहीं दिखायी पड़ा था वज्जीपुत्त को, लेकिन नगर में ये दुखी लोग जो शराब पीकर नाच रहे हैं, ये दुखी लोग जो जीवनभर दुखी रहे हैं सालभर दुखी रहते हैं और साल में एक दिन किसी तरह अपने को समझाते हैं कि सुख है-इनमें उसे सुख दिखायी पड़ा। जहां सुख जरा भी नहीं था। और ऐसा भी नहीं था कि इस दुनिया से वह अपरिचित हो। इसी दुनिया से आया था। इन उत्सवों में वह भी सम्मिलित हुआ होगा। लेकिन आदमी सीखता कहां अनुभव से? भूल-भूल जाता है। चूक-चूक जाता है। इसी दुनिया से आया था, इन्हीं गलियों से आया था, इन्हीं वेश्याओं के द्वारों पर उसने भी नाच-गाने देखे होंगे। इसी तरह शराब पी होगी, इसी तरह रागरंग में डूबा होगा- भूल गया सब, कि सुख वहां था तो मैं यहां आता ही क्यों? आज फिर मन लुभाने लगा। __ वह भिक्षु गाजे-बाजों की ये आवाजें सुन अति उदास हो गया। उसे लगा, मैं भिक्षु हो व्यर्थ ही जीवन गंवा रहा हूं।
ऐसा बहुत बार तुम्हें लगेगा। ध्यान करते वक्त लगेगा-क्या कर रहा हूं, इतना समय व्यर्थ जा रहा है, इतनी देर रेडियो ही सुन लेते, सिनेमा ही देख आते, गांव में सरकस आया है, इतनी देर ताश ही खेल लेते, मित्रों से गपशप कर लेते, यह मैं क्या कर रहा हूं! ध्यान कर रहा हूं! प्रार्थना कर रहा हूं! इस पूजागृह में बैठा मैं क्या कर रहा हूं! संन्यस्त होकर भी बहुत बार तुम्हें यह खयाल आएगा कि मैं क्या कर रहा है। इसमें सार क्या है। · मन बार-बार संसार की तरफ लौट जाना चाहता है। क्यों? क्योंकि मन का जीवन लोभ के साथ है। लोभ के बिना मन ऐसे ही है जैसे मछली सागर के बिना। जैसे मछली तड़फती है—सागर की रेत पर डाल दो, तड़फती है सागर के लिए-ऐसा मन तड़फता है लोभ के लिए, क्योंकि लोभ में ही मन जीता है। लोभ के बिना मन मर जाता है।
मैं संन्यास ले कैसी उलझन में पड़ गया, सोचने लगा वज्जीपुत्त। ऐसा अवसर मार-शैतान—चूकता नहीं।।
शैतान मन का ही नाम है। मन तो उसे खूब उकसाने लगा और मन ने तो उसे खूब फुसलाया, खूब प्रलोभन दिए, खूब सब्जबाग दिखाए कि संसार में कैसे-कैसे मजे हैं! स्त्री का मजा है, शराब का मजा है, नाच का मजा है, भोजन का मजा है,
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