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एस धम्मो सनंतनो
मेल नहीं होगा। छोटा सा ध्यान लेकर गए तो भी मेल हो जाएगा। क्योंकि ध्यान स्वभावतः, स्वरूपतः वैसा ही है जैसे बुद्ध हैं। और विचार का बुद्ध से कोई संबंध नहीं है। बुद्ध हैं निर्विचार, तो निर्विचार की थोड़ी बूंद चाहिए। ____ अगर बुद्धपुरुषों को पहचानना हो तो ध्यान में उतरना। तुम्हारी आंख पर ध्यान का रस आ जाए, फिर सब ठीक हो जाएगा। फिर जो नहीं दिखायी पड़ता था कल तक, अचानक दिखायी पड़ेगा। जैसे बिजली कौंध जाए, जैसे अंधेरे में.दीया जल जाए। और तुम तब चकित होओगे कि यह इतने करीब थी बात और इतने दिन तक मैं था और फिर भी दिखायी नहीं पड़ती थी!
यह परमोत्सव है, परम भोग है, यह परमात्म-दशा है।
बुद्ध की दशा इस जगत की दशा नहीं है। इस जगत के बाहर का है कुछ, तुम . भी थोड़े बाहर होओ तो पहचान होगी।
तो जो देख सकते थे वे आह्लादित थे।
स्वभावतः। जो देख सकते थे बुद्ध को वे आह्लादित थे, क्योंकि बुद्ध की मौजूदगी में एक बात सिद्ध हो गयी थी कि हम भी यही हो सकते हैं। आज नहीं कल, कल नहीं परसों, थोड़ी देर भला लग जाए, लेकिन आत्मविश्वास प्रतिष्ठित हो गया था। जिन्होंने बुद्ध को देख लिया था, पहचान लिया था—सागर थे बुद्ध, लेकिन अब बूंद भी आशा कर सकती थी कि मैं भी सागर हो सकती हूं। बुद्ध बड़े विराट वृक्ष थे, लेकिन अब बीज भी सपना देख सकता था वृक्ष होने का। बुद्ध के वृक्ष पर फूल खिले थे, बुद्ध सजे खड़े थे, लेकिन अब बीज भी सोच सकता था कि देर होगी, थोड़ा समय लगेगा, श्रम होगा, लेकिन कोई बात नहीं, आज नहीं कल, मैं भी फैलाकर अपनी शाखाओं को आकाश में खड़ा होऊंगा। मैं भी हवाओं में नाचूंगा। मैं भी चांद-तारों से बात करूंगा। मेरे भी फूल खिलेंगे। बुद्ध को देखकर जिनको आनंद हो गया था, उनके भीतर बुद्ध के पैदा होने का पहला बीजांकुर पड़ गया, पहला अंकुरण शुरू हुआ, वे गर्भित हो गए।
जो बुद्ध को देखकर आनंदित नहीं होते, उन्हें पता नहीं, वे आत्मघात कर रहे हैं। बुद्ध को देखकर ऐसे भी लोग हैं जो दुखी होते हैं, ऐसे भी लोग हैं जो चिंतित
और परेशान होते हैं और उदास होते हैं, ऐसे भी लोग हैं जो ईर्ष्या से भरते हैं और जलन से भरते हैं। जो बुद्ध को देखकर ईर्ष्या और जलन से भर गया; जो बुद्ध को देखकर उदास और दुखी हो गया, हिंसा से भर गया; जो बुद्ध को देखकर बुद्ध के खंडन में लग गया; जो बुद्ध को देखकर इस चेष्टा में लग गया सिद्ध करने की कि नहीं, कोई बुद्ध नहीं है, बुद्ध होते ही नहीं, यह सब धोखाधड़ी है, जो इस चेष्टा में लग गया, उसे पता नहीं वह क्या कर रहा है ! वह अपने ही हाथ से अपनी जड़ें काट रहा है। बुद्ध के खंडन से बुद्ध का तो खंडन नहीं होगा, तुम्हारे भविष्य में बुद्धत्व की संभावना क्षीण हो जाएगी।
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