SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो न था, ललकारा भी न था, उनकी वीणा के तार कंपने लगे। बुद्ध की बजती वीणा के पास यह स्वाभाविक था । मरुस्थल मरूद्यानों में बदल रहे थे। चेतनाओं में नए फूल खिलने लगे। चेतनाएं हरी होने लगीं। ध्यान की वर्षा होने लगी, समाधि की हरियाली फैलने लगी, प्रेम की सरिताएं बहने लगीं, परमात्मा का संगीत उठने लगा । है पर इसे देखने को तो चाहिए आंखें । यह सबको नहीं दिखायी पड़ा। हो सकता तुम भी मौजूद रहे होओ। कभी न कभी रहे ही होओगे। इतने लोग बुद्ध हो चुके हैं इस पृथ्वी पर और तुम सदा से यहां हो, असंभव है यह बात कि कभी न कभी बुद्धों का रास्ता और तुम्हारा रास्ता कटा न हो। असंभव है यह बात कि कभी न कभी तुम उसी रास्ते पर बुद्धों के साथ थोड़ी देर न चल लिए होओ। यह संयोग मिल ही गया होगा। कितने बुद्धपुरुष हुए हैं! अनंत बुद्धपुरुष हुए हैं अनंतकाल में। तुम भी अनंतकाल से यहां हो, इसी नगरी के वासी हो। यह बात मानी नहीं जा सकती कि तुम्हारा रास्ता कभी किसी बुद्धपुरुष ने नहीं काटा होगा। लेकिन तुम पहचान नहीं पाए। तुम अपनी धुन में चले गए होओगे। तुम अपनी दुकानदारी, अपना बाजार, अपना धन-दौलत, अपने बच्चे, अपना परिवार, अपनी चिंता - फिकर में डूबे रहे होओगे, बुद्ध पास से गुजर गए होंगे, तुमने आंख उठाकर न देखा होगा। तुम्हारे भीतर मन का इतना शोरगुल है, इतना कोलाहल है कि बुद्ध अपने एकतारे को बजाते तुम्हारे पास से निकल गए होंगे और तुम्हें सुनायी न पड़ा होगा। तुम अपने में इस तरह डूबे हो कि तुम देखते ही नहीं कि क्या हो रहा है चारों तरफ। किन वृक्षों पर फूल खिल गए, और किन पक्षियों ने गीत गाए, कौन सा सूरज निकला, कौन से चांद-तारों से आज आकाश भरा है, फुरसत कहां है? तुम इतने व्यस्त हो अपनी क्षुद्र बातों में कि विराट से चूक जाते हो । खयाल रखना, क्षुद्र भी विराट को चुका सकता है। एक छोटा सा तिनका आंख में पड़ जाए तो सामने खड़ा हिमालय दिखायी पड़ना बंद हो जाता है। जरा सा तिनका आंख में पड़ जाए तो आंख बंद हो गयी, हिमालय दिखायी पड़ना बंद हो गया। हिमालय इतना विराट है और छोटे से तिनके के कारण छिप जाता है । ऐसी छोटी-छोटी क्षुद्र बातें हमारी आंखों में भरी हैं, उनके कारण विराट हिमालय जैसे पुरुष भी हमारे पास से निकल जाते हैं, हमारी पहचान में नहीं आते। कभी अगर किसी को पहचान में भी आ जाते हों तो हम समझते हैं, पागल है, सम्मोहित हो गया होगा, विक्षिप्त हो गया है; होश में नहीं है, बुद्धि गंवा दी। हम सोचते हैं, हम तर्कशाली लोग हैं, हम विचार करना जानते हैं, हम इतने जल्दी से किसी के भुलावे में नहीं आते। इसे देखने को आंखें चाहिए । बुद्धत्व को देखने के लिए आंखें चाहिए, अंतर्दृष्टि चाहिए, सूक्ष्म दृष्टि चाहिए। एक तो स्थूल दृष्टि होती है, जो स्थूल को 128 "
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy