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एस धम्मो सनंतनो
न पड़ते? फिर उनका यह भी निष्कर्ष होता है कि जिन्हें दिखायी पड़ते हैं, ये पागल मालूम होते हैं। स्वयं को तो दिखायी नहीं पड़ता है, तो दूसरों को दिखायी पड़ता है, यह मानना भी अति कठिन हो जाता है। फिर दूसरों को दिखायी पड़ता हो और मुझे न दिखायी पड़ता हो, तो अहंकार को चोट लगती है। __ इसलिए अंधे आंख वालों को झुठलाने की चेष्टा करते हैं। और आंख वाले कम हैं, आंख वाले बहुत थोड़े हैं, अंधे बहुत हैं, अंधों की भीड़ है, आंख वाले इक्के-दुक्के हैं, इसलिए स्वभावतः बहुमत अंधों के पक्ष में हो जाता है।
बुद्धों को देखना हो तो बहुमत की मत सुनना, भीड़ की मत सुनना, नहीं तो तुम बुद्धों को कभी न देख पाओगे। बुद्धों को देखने के लिए कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं होती, कि मत ले लिया कि कितने लोग मानते हैं कि यह आदमी बुद्ध है या नहीं। कभी-कभी ऐसा होता है कि बुद्ध गुजर जाते हैं और किसी को दिखायी नहीं पड़ता। पूरा नगर अंधा हो तो किसी को भी दिखायी नहीं पड़ते हैं। और जिसे दिखायी पड़ते हैं वह इतना अकेला पड़ जाता है कि वह कहने में भी डरता है कि मैंने बुद्ध को देखा, कि मैंने भगवान के दर्शन किए, कि मेरा भगवान से संबंध जुड़ा। ___भगवान वैशाली में विहरते थे। उनके सान्निध्य में, कहते हैं शास्त्र, सूखे वृक्ष फिर से हरे हो गए।
ये प्रतीक हैं। इन प्रतीकों को तुम तथ्य मत मान लेना। आदमी नहीं देख पाता, तो वृक्ष कैसे देख पाएंगे। आदमी इतना अंधा है-आदमी जो इतना विकसित हो गया है, जिसकी चेतना इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा विकासमान चेतना है—वह नहीं देख पाता, तो वृक्ष कैसे देख पाएंगे! तथ्य मत मान लेना। लेकिन एक सूचना है इस प्रतीक में, वृक्ष सरल हैं। आदमी जितने विकसित तो नहीं हैं, लेकिन आदमी जितने जटिल भी नहीं हैं। विकास के साथ जटिलता आती है। विकास के साथ तर्क आता है, संदेह आता है। विकास के साथ अश्रद्धा आती है। विकास के साथ अहंकार आता है। विकास दोहरी तलवार है। एक तरफ तुम्हारी समझ बढ़ती है, एक तरफ तुम्हारी नासमझी की क्षमता भी उतनी ही बढ़ती है। ये दोनों साथ-साथ बढ़ती हैं। ___ तो मनुष्य जितना समझदार हो सकता है, उतना ही नासमझ भी हो सकता है। वृक्ष बहुत समझदार तो नहीं हो सकते, इसीलिए बहुत नासमझ भी नहीं हो सकते। वृक्षों में तुम बुद्धिमान वृक्ष न पाओगे और बुद्ध वृक्ष भी न पाओगे, वृक्ष सब एक जैसे होते हैं। आदमी में बड़ी प्रतिभा भी देखोगे और बड़ा अंधापन भी पाओगे।
प्रतीक यह है कि वृक्ष तो सरल हैं, अविकसित हैं, लेकिन सरल हैं। छोटे बच्चों की भांति हैं। वृक्ष अभी भी हिंदू और मुसलमान नहीं हैं। अभी भी कुरान और वेद में उनका भरोसा नहीं है। अभी भी उन्होंने किताबें पढ़ी नहीं, ज्ञानी नहीं बने। वृक्ष पंडित नहीं हैं, भोले हैं, सहज हैं।
तो प्रतीक यह है कि बुद्धों को वह समझ लेता है जो सहज है। वृक्षों जैसा
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