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________________ मातरम् पितरम् हत्वा बदला लेने का भाव भी विसर्जित हो गया है। मगर आपने मुझे मौका दिया, यह क्या कम है! अब निंदा या कंडेमनेशन भी नहीं है। मगर जागकर और जानकर सब कुछ अपने आप छूट रहा है। और यह मेरे बस की बात नहीं है। यह प्रश्न नहीं, हकीकत है। मेरे प्रणाम स्वीकार करें! जो आज तरु को हुआ है, कल लालभाई को भी हो सकता है। जरा साहस रखने की, संकल्प को सम्हाले रखने की, जरा धैर्यपूर्वक साधना में लगे रहने की जरूरत है। साधना निश्चित फल लाती है। पांचवां प्रश्न : मैं क्या करूं कि मुझे मेरे असली रूप के दर्शन हो जाएं? एक बहुत गंदे बच्चे ने अपने पिता से पूछा- पिताजी, हम सब जासूस-चोर खेल रहे हैं और मैं जासूस हूं, जरा बताइए कि मैं क्या करूं कि मेरे दोस्त मुझे पहचान न पाएं? बेटा, तुम सिर्फ साबुन से मुंह धो लो, तुम्हें कोई नहीं पहचानेगा, पिताजी बोले। 'मैं क्या करूं कि मुझे मेरे असली रूप के दर्शन हो जाएं?' जरा साबुन ! कबीर ने ध्यान को साबुन कहा है। जरा ध्यान, जरा धो डालो मुंह, जरा ध्यान के छींटे पड़ जाने दो। आखिरी प्रश्नः आप कहते हैं कि राजनीतिज्ञ धार्मिक नहीं हो सकता। क्यों? यह भी कोई बड़ी कठिन बात है समझनी कि राजनीतिज्ञ धार्मिक नहीं हो सकता। राजनीति का अर्थ होता है, दूसरों पर कैसे बलशाली हो जाऊं? दूसरों पर बलशाली वही होना चाहता है जो अपने पर जरा भी बल नहीं रखता। यह उसकी ही पूर्ति है। ___ मनोवैज्ञानिक, विशेषकर एडलर कहता है, जिनके जीवन में हीनता-ग्रंथि है, इन्फीरिआरिटी कांप्लेक्स है, जिनको भीतर से लगता है मैं हीन हूं, कुछ भी नहीं हूं, वे सारे लोग राजनीति में संलग्न हो जाते हैं। क्योंकि उनके पास एक ही उपाय है कि कुर्सी पर बैठ जाएं बड़ी, तो दुनिया को वह दिखा सकें कि मैं कुछ हूं। और दुनिया 119
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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