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________________ मातरम् पितरम् हत्वा लगेगा। जैसे-जैसे दुख के बाहर आओगे वैसे-वैसे शराब पीने की जरूरत कम होने लगेगी। शराब कोई जानकर और मजे से थोड़े ही पीता है। इस खयाल में पड़ना ही मत। लोग अत्यंत दुख में शराब पीना चुनते हैं। बहुत दुखी होता है आदमी तभी अपने को भुलाना चाहता है। जब आदमी सुखी होता है तब अपने को बिलकुल नहीं भुलाना चाहता है। मैं एक नगर में बहुत वर्षों तक रहा, एक मुसलमान वकील मेरे पास आए और उन्होंने कहा कि देखें, आपकी बात पढ़ता हूं, जंचती है। लेकिन कभी आया नहीं, क्योंकि एक बात मुझे मालूम है कि मैं जाऊंगा तो झंझट में पडूंगा। झंझट यह है कि मैं शराब पीता और मांस खाता। और मैं मानता हूं कि आप जरूर कहेंगे कि ये दोनों बातें छोड़ दो। मैंने कहा, तो तुमने मुझे समझा ही नहीं। मैं क्यों कहूं छोड़ दो? तुम मजे से मांस खाओ, मजे से शराब पीओ। उन्होंने कहा, क्या कहते हैं! आप कह क्या रहे हैं! यह मैं अपने कानों से सुन रहा हूं! मैंने कहा, तुम पीओ, तुम खाओ, तुम्हें जो करना है करो, मैं तो कहता हूं ध्यान शुरू करो। मैं तुम्हें कुछ छोड़ने को कहता नहीं, मैं तो तुम्हें कुछ पकड़ने को कहता हूं। मेरी दृष्टि विधायक है, नकारात्मक नहीं। मैं अंधेरा मिटाने को नहीं कहता, मैं कहता हूं दीया जलाओ। अंधेरा मिट जाएगा जब दीया जलेगा। ___ उन्होंने कहा, तो मैं, छोड़ने की कोई मुझे जरूरत नहीं है, तो जंचती है, फिर आपसे मेरा मेल बैठ जाएगा। मैं कई साध-संतों के पास गया, मेल मेरा बैठता नहीं, क्योंकि वे पहले ही बता देते हैं कि मांसाहार छोड़ो, शराब बंद करो। वह मुझसे होता नहीं, इसलिए बात आगे बढ़ती नहीं। मैंने कहा, आज से तुम कभी मांसाहार, शराब की बात मेरे सामने उठाना ही मत। यह तुम्हारा काम, तुम जानो। मेरा काम इतना है कि तुम ध्यान करो। मेरे से अब से तुम्हारा ध्यान का संबंध हुआ और कसम खाओ कि मेरे सामने अब कभी यह शराब और मांस की बात नहीं उठाओगे। उन्होंने कहा, उठाऊंगा ही क्यों, बात ही खतम हो गयी! . वर्षभर उन्होंने ध्यान किया लेकिन बड़ी निष्ठा से ध्यान किया, आदमी ईमानदार थे-वर्षभर के बाद उन्होंने मुझे आकर कहा कि क्षमा करें, वचन तोड़ना पड़ेगा, आज मुझे शराब की बात करनी पड़ेगी और मांसाहार की भी। मैंने कहा, क्या हुआ? उन्होंने कहा, छह महीने ध्यान करने के बाद धीरे-धीरे शराब में रस कम होने लगा; नौ.महीने के बाद रस ही कम नहीं हो गया, नौ महीने के बाद शराब से अड़चन होने लगी, जब पी लेता तो जैसी मस्ती ध्यान की बनी रहती थी वह खो जाती। जब न पीता तो मस्ती ज्यादा होती। ___ अब समझना! शराब तो भुलाने का काम करती है, अगर तुम दुखी हो तो दुख को भुला देती है, अगर तुम मस्त हो तो मस्ती को भुला देती है। तो शराब छुड़ाने का एक ही उपाय है कि तुम किसी तरह मस्त हो जाओ। उस 117
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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