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________________ एस धम्मो सनंतनो मालूम पड़े, घबड़ाना मत, ध्यान ही जीतेगा, संघर्ष जारी रहने देना । हां, मैंने निश्चित कहा कि शराब ध्यान में बाधक है। मगर इससे तुम यह मत सोचना कि फिर मैं ध्यान कैसे करूं ? क्योंकि मैं तो शराब पीता हूं तो ध्यान कैसे करूं? अगर ध्यान न करोगे, तो फिर बाहर न निकल पाओगे । ध्यान शुरू करो, शराब बाधा डालेगी... तुम शराब ही थोड़े हो गए हो, तुम्हारे भीतर अभी थोड़ा बोध है, बोध बिलकुल नष्ट तो नहीं हो गया - -नष्ट कभी होता नहीं - उस थोड़े से बोध से ध्यान शुरू करो। ध्यान के विरोध में शराब तुम्हें खींचेगी, हटाएगी, डुलाएगी, तुम उसको चुनौती मानना । और तुम अपने बोध को ध्यान में लगाना। धीरे-धीरे तुम पाओगे, बोध बड़ा होने लगा, शराब की पकड़ छोटी होने लगी। एक दिन बोध इतना बड़ा हो जाएगा कि शराब कब गिर गयी तुम्हें याद भी न रहेगी। पूछा है तुमने, 'इस खड्ड से निकलने का उपाय बताएं ।' ध्यान ही उपाय है। और कोई उपाय नहीं। ध्यान की सीढ़ी ही लगाओ इस खड्ड में। तुम्हें अड़चन होगी। तुम कहोगे, एक तरफ मैं कहता हूं कि शराब पीने से ध्यान में बाधा पड़ती है - निश्चित पड़ती है, ध्यान करोगे और शराब न पीते होओगे तो ध्यान जल्दी लग जाएगा; शराब पीते हो तो देर से लगेगा। अड़चन डालेगी शराब; शराब पूरी तरह उपाय करेगी तुम्हें फुसलाने के कि ध्यान मत करो। क्योंकि शराब अनुभव करेगी कि यह ध्यान तो दुश्मन है, तुम दुश्मन के खेमे में जा रहे हो, आज नहीं कल अगर ध्यान लग गया तो मुझसे तुम्हारा छुटकारा हो जाएगा। इसी कारण तो मैं कहता हूं, तुम ध्यान से लगाव लगाओ। चौबीस घंटे थोड़े ही शराब में पड़े हो, लालभाई ! कभी पी लेते हो, तब अगर चूक भी गए, कोई हर्जा नहीं, जब नहीं पीते तब ध्यान मत चूको । जैसे-जैसे ध्यान में मजा बढ़ेगा, वैसे-वैसे तुम पाओगे क्रांति होने लगी। आदमी शराब क्यों पीता है ? दुखी है। और मैं जानता हूं लालभाई को, दुखी हैं। भले आदमी हैं, सरल चित्त हैं और दुखी हैं। जिंदगी में बेचैनियां हैं, उन बेचैनियों को भुलाने के लिए शराब पी लेते हैं। जब तक शराब पीए रहते हैं, बेचैनियां भूली रहती हैं, दुख भूले रहते हैं । फिर जब होश में आते हैं, दुख खड़े हो जाते हैं। दुख खड़े हो जाते हैं तो कोई और उपाय नहीं सूझता, फिर शराब पीओ, फिर भुलाओ । हालांकि शराब पीने से दुख मिटते नहीं । यह कोई मिटाने का उपाय नहीं । यह तो शुतुर्मुर्ग का ढंग है। दुश्मन दिखायी पड़ा, आंख बंद कर ली और रेत में सिर गड़ाकर खड़े हो गए; इससे दुश्मन मिटता नहीं । कभी तो निकालोगे सिर रेत के बाहर। भोजन की तलाश करने तो शुतुर्मुर्ग जाएगा ! दुकान - दफ्तर तो जाओगे । जैसे ही सिर निकालोगे फिर परेशानियां खड़ी हो गयीं । ध्यान करने से तुम पाओगे कि परेशानियां मिटने लगीं। परेशानियों के कारण शराब पीते हो, ध्यान परेशानियां मिटाने लगेगा। ध्यान तुम्हें दुख के बाहर लाने 116
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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