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________________ मातरम् पितरम् हंत्वा का अर्थ दान नहीं है, त्याग का अर्थ बोध । त्याग का अर्थ देना नहीं है, त्याग का अर्थ है इस बात की समझ कि यहां देने योग्य भी क्या है ! लेने योग्य भी क्या है ! यहां का यहीं पड़ा रह जाएगा! हम आए और हम चले, सब ठाठ पड़ा रह जाएगा। जब हम नहीं आए थे तब भी यहीं था, हम चले जाएंगे तब भी यहीं होगा, हम नाहक बीच में अपना-तुपना करके बहुत झगड़े-झांसे खड़े कर लेते हैं । मेरा, तेरा । दे लेते, रोक लेते। कब्जा कर लेते, त्याग का मजा ले लेते। और अपना यहां कुछ भी नहीं है। अपना यहां कुछ है नहीं, ऐसी प्रतीति को मैं कहता हूं त्याग । I तो व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर है। त्याग बड़ी बात है या छोटी, तुम पर निर्भर है अगर ध्यान है, तो त्याग कुछ भी खास बात नहीं, बड़ी साधारण बात है— ध्यान की छाया। अगर ध्यान नहीं है, तो फिर त्याग बड़ी बात है, बहुत बड़ी बात है। चौथा प्रश्न : अगर शराब ध्यान में बाधक है, तो सच्चिदानंद वाली समाधि की तो बात ही क्या ! अनुभव से समझता हूं कि इस खड्ड से निकलकर ही ध्यान की प्राप्ति हो सकती है। कृपाकर इस खड्ड से निकलने का उपाय बताएं । पूछा है लालभाई ने । पक्के पियक्कड़ हैं। मगर चलो पूछा, यह भी खूब । रास्ता इससे ही बनेगा। पूछना आ गया तो पहली किरण आ गयी। यह भाव उठने लगा कि इस खड्डे से बाहर निकलना है, तो निकल आओगे। खड्डे में तुम ही गए हो, जिन पैरों से गए हो वे ही पैर वापस ले आएंगे। जिस खड्डे में गिर गए हो, अगर पहचानने लगो कि यह खड्डा है, तो कितनी देर पड़े रहोगे ? खड्डे में आदमी इसीलिए पड़ा रहता है कि सोचता है महल है, सोने का महल है । फिर तुम पैरं पसारकर और चादर ओढ़कर सोए रहते हो। जिस दिन दिखायी पड़ा, अरे, खड्डा है, उठना शुरू हो गया, बाहर निकलना शुरू हो गया। मैंने पिछले दिन कहा, शराब ध्यान में बाधक है; यह आधी ही बात थी । आधी बात तुमसे और कह दूं, ध्यान भी शराब में बाधक है। शराब पीए तो ध्यान करना मुश्किल होगा, और अगर ध्यान किए तो शराब पीना मुश्किल हो जाएगा । और यह बात खयाल रखना, अगर दोनों में कुश्तमकुश्ती हो तो ध्यान ही जीतता है, शराब नहीं जीतती। शराब जीत भी कैसे सकती है ! शराब छोटी शराब है, ध्यान बड़ी शराब है। शराब साधारण अंगूरों से निकलती है, ध्यान तो आत्मा का निचोड़ है । तो ध्यान और शराब में अगर संघर्ष हो जाए, तो पहले शायद थोड़े दिन तक शराब जीतती 115
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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