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________________ मातरम् पितरम् हत्वा ये सूत्रों का पता चल जाए तो वे बड़े गदगद होंगे, उन्हें बड़ा सहारा मिलेगा। तब उनकी बात केवल मनोवैज्ञानिक ही न रह जाएगी, उनकी बात का एक धार्मिक आयाम भी हो जाएगा। तीसरा प्रश्नः त्याग बड़ी बात है या छोटी? आदमी आदमी पर निर्भर है।। - अगर तुमने समझकर त्यागा तो बड़ी छोटी बात है। अगर नासमझी से त्यागा तो बड़ी बात है, बड़ी बड़ी बात है। समझ का अर्थ होता है, तुमने जाना धन में कोई मूल्य ही नहीं है। तो त्याग बड़ी छोटी बात है। कचरा था छोड़ दिया, तो क्या छोड़ा? तुम उसका गुणगान न करोगे, स्तुति न करोगे। स्तुति न करवाओगे, न आकांक्षा करोगे। तुम कहते न फिरोगे कि मैंने लाखों छोड़ दिए हैं। वहां कुछ था ही नहीं, तुम्हें दिखायी पड़ गया है, इसलिए छोड़ा। कूड़ा-करकट था, छोड़ दिया; कंकड़-पत्थर थे, छोड़ दिए। __लेकिन अगर तुमने किसी की बात सुनकर छोड़ा, स्वर्ग के लोभ में छोड़ा, पुरस्कार की आशा में छोड़ा, सोचा कि यहां छोड़ेंगे तो वहां मिलेगा, परमात्मा के घर में खूब मिलेगा, यहां लाख छोड़ें तो वहां दस लाख मिलेंगे, ऐसे गणित से छोड़ा, तो तुम घोषणा करते फिरोगे। क्योंकि तुम्हें स्वयं दिखायी नहीं पड़ा है कि धन व्यर्थ है। तुम तो और धन की आकांक्षा में इस धन को छोड़े हो। तुम शाश्वत धन की आशा में क्षणभंगुर धन को छोड़े हो। तुम तो भगवान के साथ भी जुआ खेल रहे हो, लाटरी लगा रहे हो। तो तुमने बड़ा त्याग किया, तुम घोषणा करोगे, चिल्लाते फिरोगे कि मैंने इतना छोड़ा। मगर फिर त्याग हुआ ही नहीं। ____ मैंने सुना है कि एक औरत मरी—एक सूफी कहानी है—एक औरत मरी। देवदूत उसे लेने आए। अब वे सोचने लगे कि इसे कैसे स्वर्ग ले जाएं ? इसने कोई अच्छा कृत्य कभी किया? पूछा उसी बूढ़ी की आत्मा से, उसने कहा-हां, मैंने एक मूली एक बार एक भिखारी को दी थी। तो उन्होंने कहा चल, मूली के ही सहारे चल। मूली प्रगट हो गयी। उस औरत ने मूली को पकड़ लिया, और वह स्वर्ग की तरफ उठने लगी। और लोगों ने देखा। उसको स्वर्ग की तरफ उठते देखते कोई ने उसके पैर पकड़ लिए, वह भी उठने लगा; किसी ने उसके पैर पकड़ लिए, वह भी उठने लगा, बड़ी लंबी कतार लग गयी। क्यू तो लग गया। चली स्त्री उठती और वह लंबी कतार चली उठती। स्त्री को बड़ा बुरा भी लगने लगा कि दान तो मैंने की मूली और 113
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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