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________________ मातरम् पितरम् हत्वा असली जन्म हुआ, तुम्हारा पहली दफा जन्मदिन आया। तुम्हारे मां-बाप फूल लगाएंगे; दीए जलाएंगे। अगर उनमें समझ है, तो भोज देंगे, मित्रों को बुलाएंगे कि आज मेरा बेटा स्वत्व को उपलब्ध हुआ। आज यह हमारी पुनरुक्ति नहीं है, आज इसके अपने जीवन की यात्रा शुरू होती है। इन वक्तव्यों में माता-पिता से कुछ भी प्रयोजन नहीं है। इन वक्तव्यों में सिर्फ इतना ही प्रयोजन है, जैसे एक आदमी सीढ़ी चढ़ता है। बिना सीढ़ी चढ़े ऊपर की छत पर पहुंच नहीं सकता, फिर अगर सीढ़ी को ही पकड़कर रुक जाए रास्ते में तो भी छत तक नहीं पहुंच सकता। सीढ़ी पर चढ़ना भी होता है, फिर एक दिन सीढ़ी छोड़ भी देनी होती है। और स्वभावतः, मां-बाप का संस्करण सबसे गहरा होता है। क्योंकि वे हमारे सबसे ज्यादा करीब होते हैं, पहली शिक्षा उन्हीं से मिलती है। अब तुम इसे जरा समझो कि किस तरह हम जकड़े हुए हैं। पहली दफा बच्चा पैदा होता है, बच्चे का जो पहला संसर्ग है जगत से, संसार से, वह मां के स्तन से होता है। पहला संसर्ग, पहला संसार मां का स्तन है। और तुम देखना, ऐसा पुरुष खोजना मुश्किल है जो स्त्री के स्तनों से मुक्त हो। जब तक तुम स्त्री के स्तनों से मुक्त नहीं हो, तब तक तुम अभी बचकाने ही हो; अभी तुम पहले दिन के बच्चे ही हो, जो मां के स्तन पर निर्भर था। सदियां बीत गयीं, लोग मूर्तियां बनाते तो स्तन महत्वपूर्ण; चित्र बनाते तो स्तन महत्वपूर्ण; फिल्म बनाते तो स्तन महत्वपूर्ण; कविता लिखते, उपन्यास लिखते तो स्तन महत्वपूर्ण। और ऐसा मत सोचना कि आज ही ऐसा हो गया है, सदा से ऐसा है। तुम अपने पुराने से पुराने काव्यों को उठाकर देखो-कालिदास को, कि भवभूति को-वहां भी वही है, स्तनों का वर्णन है। तुम पुरानी से पुरानी मूर्तियां देखो, तो स्तन बहुत उभारकर दिखाए गए हैं; इतने बड़े स्तन होते भी नहीं जितने मूर्तियों में दिखाए गए हैं-खजुराहो जाकर देखो। इतने सुडौल स्तन होते भी नहीं जितने चित्रकारी में और कविताओं में खोदे गए हैं। . यह क्या बात है.? मामला क्या है ? आदमी स्तन के पीछे ऐसा दीवाना क्यों है ? यह पुरुष स्तन के प्रति इस तरह उत्सुक क्यों है ? क्योंकि सभी पुरुषों का जो पहला संसर्ग संसार से हुआ, जो पहला संस्कार पड़ा, वह स्तन का है। और जो छोटा बच्चा, छोटा सा बच्चा, उसके लिए स्तन बहुत बड़ी घटना है। और स्वभावतः, स्तन जितना भरा हो, उतना बच्चे के लिए सुखद है। स्तन जितना सुडौल हो, उतना बच्चे के लिए सुखद है-उतना ज्यादा दूध देता है। वही भाव पोषण का गहरे में बैठ गया है। तो जिस स्त्री का स्तन बड़ा न हो, उसमें तुम्हारा रस कम होता है। तो तुम्हारे भीतर जो बचपन में बैठा संस्कार है, अब भी तुम्हारी आंखों पर पर्दा किए हुए है। अब जरूरी नहीं है कि छोटे स्तन वाली स्त्री बुरी स्त्री हो और बड़े स्तन वाली स्त्री अच्छी स्त्री हो, जरूरी नहीं, आवश्यक नहीं। लेकिन प्लेब्वाय और 111
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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