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________________ एस धम्मो सनंतनो अपने बोलने-चालने में माता-पिता को छिपा पाओगे; तुम अपने कृत्यों में, दुष्कृत्यों में माता-पिता को छिपा पाओगे, अच्छे-बुरे में छिपा पाओगे। तो तुम हो कहां? बुद्ध जब कहते हैं माता-पिता की हत्या कर दो, तो वह कहते हैं उस हत्या के बाद ही तुम्हारा जन्म होगा। एक जन्म तो हो गया, उतना जन्म काफी नहीं है, द्विज बनो, अब दूसरा जन्म चाहिए, फिर से जन्मो। यह दूसरा जन्म तुम्हारी चैतन्य की पहली घोषणा होगी। दोहराओ मत। तुम कोई अभिनय मत करो। __ मगर ऐसा ही हो रहा है। मैं लोगों को देखता हूं। मेरे पास कभी कोई आ जाता है, वह कहता है कि मेरे पिता का ऐसा दुर्व्यवहार है, कि मेरी मां ऐसी दुष्ट है, तो इस-मां तो यहां मौजूद नहीं है, पिता यहां मौजूद नहीं हैं-मैं इसी आदमी का निरीक्षण करता रहता कुछ दिन तक। और अक्सर इस आदमी में ही प्रमाण मिल जाते हैं कि इसकी बात सच है या नहीं। इसको ही देखकर इसके मां-बाप की सारी कथा धीरे-धीरे लिखी जा सकती है। इसके ही व्यवहार में इसके मां-बाप को पकड़ा जा सकता है। ___ इस बात के लिए बुद्ध ने कहा कि अपने मां-बाप की हत्या कर दो। अपने संस्कार जो एक दिन जरूरी थे अब तोड़ डालो, बागुड़ हटा दो, बांस गिरा दो, अब सहारे की जरूरत नहीं है। बैसाखियां फेंक दो। अब अपने पैर पर खड़े हो जाओ। आत्मवान बनो। यह आत्मवान बनने का सूत्र ही ट्रांजेक्शनल एनालिसिस का सूत्र भी है। स्वयं बनो। स्वत्व की घोषणा करो। उधार-उधार, बासे-बासे न रहो। तुम निरीक्षण करोगे तो तुम बहुत चौंकोगे। निन्यानबे प्रतिशत तुम उधार हो। और सबसे ज्यादा उधारी मां-बाप के प्रति है, स्वाभाविक। और ध्यान रखना, इसका यह मतलब भी नहीं है कि बुद्ध यह कह रहे हैं, मां-बाप गलत थे—यह तो बुद्ध कह ही नहीं रहे हैं। मां-बाप तुम्हारे कितने ही अच्छे रहे हों, इससे कोई संबंध नहीं है। अक्सर तो ऐसा होता है, बुरे मां-बाप से छूटना कठिन नहीं होता, अच्छे मां-बाप से ही छूटना कठिन होता है। अच्छे मां-बाप की जकड़ गहरी होती है। क्योंकि अच्छे से कैसे छटो? सोने की जंजीर होती है, उसे छोड़ो कैसे, तोड़ो कैसे? बुरे मां-बाप से तो छुटकारा हो जाता है, अच्छे मां-बाप से मुश्किल होता है। अच्छे से तो लगाव बनता है, मोह बनता है—इतने प्यारे मां-बाप! बुद्ध यह नहीं कह रहे हैं कि तुम्हारे मां-बाप गलत हैं, बुद्ध का वक्तव्य मां-बाप से कुछ भी संबंधित नहीं है। मां-बाप कैसे थे, इस संबंध में बुद्ध के वक्तव्य में कोई बात नहीं कही गयी है-न अच्छा, न बुरा। बुद्ध सिर्फ इतना ही कह रहे हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन अपने मां-बाप से मुक्त होने की क्षमता जुटानी चाहिए। जिस दिन यह क्षमता तुम्हारी पूरी हो जाती है कि तुम मां-बाप से पूरी तरह मुक्त हो गए, उस दिन तुम व्यक्ति बने, उस दिन तुम आत्मवान हुए। उस दिन अगर तुम्हारे मां-बाप को थोड़ी भी समझ है, तो वे आनंदित होंगे और उत्सव मनाएंगे। तुम्हारा 110
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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