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मातरम् पितरम् हत्वा
भोजन का वक्त हो गया। भोजन आया तो कहा, नहीं, मुझे भोजन भी नहीं करना है। तो मैंने कहा, हुआ क्या तुम्हारी भूख को? उन्होंने कहा, नहीं, कोई बात नहीं। पर मैंने कहा कि कोई तकलीफ हो रही है? पेट में कुछ अड़चन है? क्या बात है? उन्होंने कहा, अब आप बार-बार जिद्द करेंगे और चौबीस घंटे साथ रहना है, बात यह है कि मैं कहीं की चाय नहीं पी सकता और कहीं का भोजन नहीं कर सकता। यह चौबीस घंटे मैं तो उपवास करूंगा। मैंने कहा, क्यों? उन्होंने कहा, अब आप ज्यादा न छेड़ें, बात यह है कि मुझे इन्फेक्शन का डर है। मैंने कहा, यह डर आया कहां से? उन्होंने कहा कि मेरे पिता!
पिता चल बसे, मगर पिता जो संस्कार दे गए हैं वह बैठा है। जब बुद्ध कहते हैं, माता-पिता की हत्या कर दो, तब बुद्ध यह कह रहे हैं कि यह भीतर जो संस्कार है इसकी हत्या कर दो। अब यह फिजूल की बकवास है। और इतने डर-डरकर जीओगे तो जीने में कोई सार ही नहीं है, मर ही जाओ। ऐसे डर-डरकर तो जी न सकोगे। उनकी पत्नी ने मुझे बताया कि मेरे पति ने मुझे कभी चूमा नहीं; क्योंकि इन्फेक्शन!
यह तो बात सच है कि चुंबन से ज्यादा इन्फेक्सियस दुनिया में कोई और चीज नहीं है। क्योंकि दूसरे के ओंठों से लाखों कीटाणु तुम्हारे ओंठों में चले जाते हैं। अब यह पति तो तभी चूम सकते हैं अपनी पत्नी को जब, जब उसके ओंठ वगैरह सब स्टरलाइज्ड किए जाएं। मगर तब तक चुंबन का अर्थ न रह जाएगा, प्रयोजन न रह जाएगा। यह तो भय सीमा से आगे बढ़ गया। यह पागलपन आ गया।
तुम जरा अपने भीतर खोजना, शायद इतनी अतिशयोक्ति न हो, लेकिन तुम यही पाओगे। जब तुम अपने बेटे से बात कर रहे हो तब जरा गौर करना, तुम उसी ढंग से बात कर रहे हो, जिस तरह तुम्हारे पिता तुमसे बात करते थे। यह बड़े मजे
की बात है। तो तुम बढ़े जरा भी नहीं, तुम वही दोहरा रहे हो, तुम ग्रामोफोन के रिकार्ड हो। तुम जब अपनी पत्नी से झगड़ा करो तो जरा गौर से देखना, यह झगड़ा वैसे ही हो रहा है जैसे तुम्हारे पिता और तुम्हारी मां का होता था। अक्सर तुम वही दोहरा रहे हो। इसमें जरा भी नया नहीं, कुछ नवीन नहीं है।
और अगर तुम स्त्री हो तो जरा गौर करना कि तुम अपने पति के साथ जो व्यवहार कर रही हो, वह तुमने अपनी मां से सीखा। मां जो तुम्हारे पिता के साथ करती थी, वही तुम अपने पति के साथ किए जा रही हो।
ऐसे सदियों तक चीजें दोहरती रहती हैं। और चैतन्य का लक्षण है-नवीनता। जब इतना दोहराव होता है जीवन में, इतनी पुनरुक्ति होती है, तो चेतना दब जाती है, जड़ हो जाती है, मर जाती है; तब तुम जीवंत नहीं रह जाते।
तुम जरा जांच-परख करना। तुम अपनी भाव-भंगिमाओं में अपने माता-पिता को छिपा पाओगे। तुम अपने व्यवहार में अपने माता-पिता को छिपा पाओगे, तुम
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