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एस धम्मो सनंतनो
मारे उसके सामने दूसरा भी कर देना; और जिसने कहा कि जो तुम्हारा कोट छीन ले उसको कमीज भी दे देना, हो सकता है बेचारे को कमीज की भी जरूरत हो; और जो तुमसे एक मील बोझ ले जाने को कहे उसके साथ दो मील चले जाना, क्योंकि कौन जाने संकोचवश कह न रहा हो; शत्रु को भी अपने जैसा प्रेम करना; जिसने यह बात कही, उन्हीं ओंठों से यह दूसरी बात बड़ी अजीब लगती है कि जब तक तुम अपने मां-बाप को घृणा न करोगे, मेरे शिष्य न हो सकोगे।
ईसाइयत इन वचनों को छिपाती रही है। इन पर व्याख्या नहीं की जाती। बुद्ध का वचन तो और भी खतरनाक है। जीसस तो कहते हैं, जब तक तुम अपने माता-पिता को घृणा न करो-यह कुछ भी नहीं है! मेरी अपनी समझ यही है कि बुद्ध का सूत्र ही है जो जीसस के कानों में पड़ गया था, लेकिन जीसस ने इसमें बदलाहट की होगी। क्योंकि जिनसे वह बात कर रहे थे वे तो यह भी नहीं समझ पा रहे थे, हत्या की बात सुनकर तो वे बिलकुल ही पागल हो जाते कि तुम कह क्या रहे हो! बुद्ध ने कहा है, मां-बाप की हत्या न करे जो, वह भिक्षु न हो सकेगा। __यह तो और भी कठिन बात हो गयी और बुद्ध के मुंह से! महाकरुणावान! बुद्ध से ज्यादा करुणा से भरा कोई व्यक्ति नहीं हुआ, हिंसा की बात कह रहे हैं-हत्या कर दो मां-बाप की!
समझ लेना। बाहर के मां-बाप से इसका प्रयोजन नहीं है। तुम्हारे भीतर जो संस्कारित होकर मां-बाप बैठ गए हैं, उनकी हत्या कर दो। तुम्हारे भीतर जो मां-बाप की आवाज बहुत गहरे में प्रविष्ट हो गयी है, जो तुम्हें अब भी मुक्त नहीं होने देती, जो संस्कार तुम्हारे भीतर बहुत जंजीर की तरह बंधा पड़ा है, उसे तोड़ दो। ___ ऐसा रोज तुम्हें अनुभव होगा अगर तुम थोड़ा समझपूर्वक जीओगे, थोड़े ध्यानपूर्वक जीओगे, थोड़ी स्मृति को जगाओगे, तो तुम घड़ी-घड़ी पाओगे।
मेरे एक मित्र हैं, हिंदी के बड़े कवि हैं। कोई पचास साल तो उम्र है, पत्नी है, बच्चे हैं; लड़की की शादी हो गयी, उसके बच्चे हैं। एक दफा मेरे साथ सफर किए। उनकी पत्नी ने मुझसे कहा कि सफर में आपको इनकी कई खूबिया पता चलेंगी। मैंने कहा, यह मेरे पुराने परिचित हैं। उन्होंने कहा, इससे कुछ नहीं होता। सफर में पता चलेंगी। और सफर में पता चलीं।
डाक्टर के बेटे हैं वह। पिता तो चल बसे। पिता कुछ झक्की किस्म के थे। डाक्टर थे और झक्की। सो दोहरी बीमारियां। झक्की ऐसे थे कि हर चीज में शक होता था कि कहीं कोई इन्फेक्शन न लग जाए, यह न हो जाए, वह न हो जाए। वही झक्क इनको भी है। वह मुझे पता भी नहीं था। जब ट्रेन में चाय आयी तो उन्होंने कहा कि नहीं, मैं नहीं पीऊंगा। मैंने कहा, क्या बात है? उन्होंने कहा, नहीं-नहीं। फिर भी, मुझे बताएं तो! उन्होंने कहा, नहीं, मुझे पीना ही नहीं, मुझे अभी इच्छा ही नहीं है। चलो, मैंने कहा, कोई बात नहीं।
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