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________________ मातरम् पितरम् हंत्वा को जानता हूं, तो फिर प्रेम की बात न करेगा। आज बड़ी कठिन थी बात । बड़ी कठिन घड़ी थी। महंगा था यह सौदा । आज सोचकर ही लिखना था। खूब सोचने लगा, प्रेम को जानता हूं ? ध्यान को जानता हूं ? धर्म को जानता हूं ? ईश्वर को, आत्मा को, क्या जानता हूं ? उसने बड़ी किताबें लिखीं थीं इसके पहले – आस्पेंस्की ने—जगतख्याति थी उसकी। गुरजिएफ को तो कोई जानता भी न था, एक गरीब फकीर ! लेकिन आस्पेंस्की जगतख्यात था, उसकी किताबें सारी दुनिया में थीं, अनेक भाषाओं में अनुवादित हो चुकी थीं, लोग उसे ज्ञानी की तरह मानते थे । यह ज्ञानी लेकिन आदमी ईमानदार रहा होगा। एक घंटेभर बाद वापस आया, इसने कोरा कागज गुरजिएफ के हाथ में दे दिया और कहा, मुझे कुछ भी पता नहीं है, आप अ, ब, स से शुरू करें। मैं निपट अज्ञानी हूं, इससे बात शुरू करें। जिएफ ने कहा, तब कुछ हो सकता है। मैं सोच रहा था कि तूने कितना अज्ञान अपनी किताबों में बघारा है ! कितनी बातें तू लोगों को सलाह देता रहा है ! आज कसौटी हो जाएगी कि तू आदमी ईमानदार है या नहीं ? तू ईमानदार है। मैं तुझे स्वीकार करता हूं । तू इस रास्ते पर बढ़ सकेगा । जगत की बड़ी से बड़ी ईमानदारी इस बात में है कि हम स्वीकार करें कि हमें मालूम नहीं है। जो स्वीकार करते हैं कि हम अज्ञानी हैं, किसी दिन ज्ञानी हो सकते हैं। जो स्वीकार करने में झिझकते हैं, जो थोथे और झूठे ज्ञान को अपना ज्ञान दावा करते रहते हैं, उनके ज्ञानी होने की कोई संभावना नहीं है। दूसरा प्रश्न : ट्रांजेक्शनल एनालिसिस के बारे में बोलते हुए आपने कहा कि अगर इस विधि के खोजने वालों को भगवान बुद्ध का मातरम् पितरं हत्वा वाला सूत्र मिल जाए तो यह विधि अपूर्व रूप से उपयोगी हो जाए। इस पर कुछ और प्रकाश डालने की कृपा करें ! मनुष्य जब पैदा होता है, तो कोरे कागज की तरह पैदा होता है । मनुष्य जब पैदा होता है, तो शुद्ध निर्मलता की तरह पैदा होता है । मनुष्य जब पैदा होता है, तो पूर्ण स्वतंत्रता की तरह पैदा होता है। बेशर्त। उस पर कोई सीमा नहीं होती, कोई मर्यादा नहीं होती – अमर्याद, असीम। मनुष्य जब पैदा होता है, तो आत्मा की तरह पैदा होता है । फिर समाज, परिवार, पिता, माता, शिक्षक, स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय, सब मिलकर इस आत्मा के आसपास मन की एक पर्त - 103
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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