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________________ एस धम्मो सनंतनो शापग्रस्त से कोई वरदान की बातें करे मंजिलों की ओर बढ़ना है तो चलते ही रहो लाख दुनिया गर्दिशो - तूफान की बातें करे जो स्वयं चल पाए कांधे पर लिए अपनी सलीब हक बजानिब है वही ईमान की बातें करे तब जब तक अपने कंधे पर अपनी सूली लेकर तुम न चले होओ, तब तक ईमान की बातें करना ही मत। जब तक धर्म के रास्ते पर तुमने तकलीफ न उठायी हो, तक धर्म की बात करना ही मत। जब तक प्रभु के चरणों में तुमने अपना सिर काटकर न चढ़ाया हो, तब तक प्रभु अनुभव की बात करना ही मत। जब तक अपने मन को राख करके समाप्त न कर दिया हो, तब तक ध्यान-समाधि की बात करना ही मत । जो स्वयं चल पाए कांधे पर लिए अपनी सलीब हक बजानिब है वही ईमान की बातें करे तब तुम्हें हक मिलता है। नहीं तो गैर-अधिकार बात है। हिंसा है। इसे रोको । इसे छोड़ो। इस जाल को तोड़ो, इसके बाहर आओ। तुम्हारा जीवन ही तब सलाह बन जाता है। तुम्हारे उठते-बैठते से लोगों को किरणें मिलेंगी। तुम्हारी आंख का इशारा पर्याप्त होगा। अभी तुम लाख सिर मारो, तुम जब कह रहे हो बड़े बल से, तब भी तुम्हारे भीतर की निर्बलता साफ जाहिर होती है। तुम लड़खड़ा रहे हो। तुम कह रहे हो श्रद्धां की बात और भीतर संदेह खड़ा है। इस श्रद्धा में श्रद्धा जैसा कुछ भी नहीं है। गुरजिएफ का एक बड़ा शिष्य आस्पेंस्की जब पहली दफा उसे मिला तो गुरजिएफ ने आस्पेंस्की से कहा, यह कोरा कागज है, इस पर तू एक तरफ लिख ला कि क्या तू जानता है और दूसरी तरफ लिख ला कि क्या तू नहीं जानता है। आस्पेंस्की ने कहा, क्यों ? तो गुरजिएफ ने कहा, ताकि जो तू जानता है, उसकी बात हम कभी न करेंगे - जब तू जानता ही है तो उसकी हम बात क्यों करें ? जो तू नहीं जानता, उसकी बात करेंगे। जो तू नहीं जानता, वह मैं जनाने की कोशिश करूंगा; जो जानता है, वह समाप्त हो गयी बात । तू सोचते हो, किस कठिनाई में पड़ गया होगा आस्पेंस्की ! ले तो लिया कागज हाथ में, बगल की कोठरी में चला गया। सर्द रात थी और बर्फ पड़ रही थी बाहर, लेकिन उसे पसीना आने लगा । कलम तो उठा ली, लेकिन लिखने को कुछ न सूझे - क्या जानता हूं ? और आज बात बड़ी महंगी थी – सस्ती नहीं थी - क्योंकि एक दफा लिख दिया इस कागज पर, तो वह तो जानता है गुरजिएफ को कि वह आदमी ऐसा है कि अगर लिख दिया कि ईश्वर को जानता हूं, तो फिर ईश्वर की बात न करेगा ! लिख दिया कि ध्यान को जानता हूं, तो फिर ध्यान की बात न करेगा। लिख दिया कि प्रेम 102
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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