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________________ मातरम् पितरम् हत्वा संबंध! सिर्फ झंझट मिटाने को मैंने कहा था। मैंने कहा, आज मेरे मन में आपके प्रति श्रद्धा का भाव पैदा हुआ। अब तक मैं आपको निपट बेईमान समझता था। ___ खयाल रखना कि तुम जो भी सलाह तुम्हारे जीवंत अनुभव से नहीं प्रगटी है, देते हो, उससे तुम बेईमान समझे जाते हो, ईमानदार नहीं। वही कहो जो जाना है। तब कितना कम कहने को रह जाता है! कभी सोचा? कितना कम रह जाता है कहने को! एक पोस्टकार्ड पर लिख सकते हो, इतना कम बचता है। सब कूड़ा-करकट हट जाता है। और तुम चकित हो जाओगे, उस छोटे से पोस्टकार्ड पर लिखी गयी बातें इतनी बहुमूल्य हो जाती हैं। एक-एक बात का वजन ऐसा हो जाता है जैसा हिमालय का वजन हो। तुम जिसे दोगे, वह कृतकृत्य होगा! पूछते हो, 'दूसरे को सलाह देना इतना सरल क्यों होता है?' इसमें कठिनाई है भी क्या? तुम्हें करना नहीं है, करे तो दूसरा, फंसे तो दूसरा; न करे तो पछताए, करे तो पछताए। मुसीबत तुमने दूसरे की खड़ी कर दी। तुम्हें क्या अड़चन है ? तुम्हें दूसरे पर दया भी नहीं है। सिर्फ दयाहीन मुफ्त सलाह देते हैं। तुममें करुणा भी नहीं है। तुम्हें दूसरे के प्रति सहानुभूति भी नहीं है। मैंने सुना, मुल्ला की पत्नी चौके के बाहर आयी और उसने कहा, नसरुद्दीन, आज मेरे दांत में बहुत दर्द है। नसरुद्दीन ने अखबार से आंखें उठायीं, बड़ी बेरुखी से, बेमन से, और कहा, तो निकलवा दो। मेरे दांत में होता तो मैं तुरंत ही निकलवा देता। पत्नी ने कहा, हां जी, लेकिन यह तुम्हारा दांत थोड़े ही है! तुम्हारा होता तो मैं भी उसे निकलवाने में कोई कोर-कसर उठा न रखती। ___ अपना दांत निकलवाना हो, तो अड़चन होती है। दूसरे का दांत निकलवाना हो, इसमें सलाह देने में क्या अड़चन है? दूसरे को सलाह देने में अड़चन नहीं है। इसीलिए मैं कहता हूं, सोचकर देना। कच्ची मत दे देना। ऐसे ही मत दे देना। टालने को मत दे देना। व्यर्थ ज्ञान का प्रभाव दिखाने को मत दे देना। थोथे आडंबर के कारण मत दे देना। पीड़ा से देना, सोचकर देना, अनुभव करके देना; उसके साथ सहानुभूति रखकर देना। तो तुम पाओगे कि तुम्हारी हर सलाह दूसरे को बदले न बदले, तुम्हें बदलती है। तुम अपनी हर सलाह में पाओगे कि तुम्हारा जीवन निखरता है। हर सलाह तुम्हारे जीवन पर छेनी की एक चोट बनेगी। तुम्हारी प्रतिमा ज्यादा साफ उभरेगी। भीड़ में ऐसे कोई इंसान की बातें करे जैसे पत्थर के बुतों में जान की बातें करे झूठ को सच पर जहां तरजीह देना आम हो कौन होगा जो वहां पर ज्ञान की बातें करे है तो खुशफहमी महज लेकिन बहस से फायदा है तो खुशफहमी महज लेकिन बहस से फायदा 101
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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