________________
एस धम्मो सनंतनो
इतने सच्चे हो सको, अपने मित्र-प्रियजनों के प्रति इतने सच्चे हो सको, तुम सोचते हो, तुम्हारे जीवन में कैसी न सुगंध आ जाएगी! कैसे न तुम सुंदर हो उठोगे!
यह कुशलता छोड़िए। और सबसे पहले तो जो तुम किसी से कहने चले हो, उसे परखो, जांचो, उसे जीवन की कसौटी पर कसो, वह सच भी है! हां, तुम्हें लगे कि सच है, तुम्हें उससे रस मिले, तुम्हारे जीवन में आनंद बहे, तुम्हारे जीवन में थोड़ी रोशनी हो, थोड़ा साफ-साफ दिखने लगे, तुम्हारी आंखों का धुंधलका मिटे, फिर तुम जरूर कह देना। स्वभावतः, जब तुम्हें दिखायी पड़ेगा, तो जिन्हें तुम प्रेम करते हो, उनसे तुम निवेदन करना चाहोगे। लेकिन अभी तो अक्सर यही होता है कि तुम दूसरों को सलाह इसलिए देते हो, सिर्फ यही सिद्ध करने को कि मैं तुमसे ज्यादा ज्ञानी हूं, मुझे ज्यादा पता है। ____ मैं छोटा था तो मेरे गांव में एक बड़े पंडित थे, मेरे पिता के मित्र थे। मैं पिता का सिर खाया करता, कोई भी सवाल उठाता। मगर वह ईमानदार आदमी हैं, उनकी ईमानदारी के कारण मेरे मन में उनके प्रति अपार श्रद्धा है। वह मुझसे कहते, मुझे पता नहीं, तुम पंडितजी के पास चलो। पंडितजी के प्रति मेरे मन में कोई श्रद्धा कभी पैदा नहीं हुई। क्योंकि मुझे दिखता नहीं कि वह जो कहते थे, उसमें जरा भी सचाई थी। उनके घर जाकर मैं बैठकर उनका निरीक्षण भी किया करता। वह जो कहते थे उससे उनके जीवन का कोई तालमेल न था। लेकिन बड़ी ब्रह्मज्ञान की बातें करते थे। ब्रह्मसूत्र पर भाष्य करते थे। और जब मैं उनसे ज्यादा विवाद करने लगता तो वह कहते, ठहरो; जब तुम बड़े हो जाओगे, उम्र पाओगे, तब यह बात समझ में आएगी। मैंने कहा, आप उम्र की एक तारीख तय कर दें। अगर आप जीवित रहे तो मैं निवेदन करूंगा उस दिन आकर। मुझे टालने के लिए उन्होंने कह दिया होगा-कम से कम इक्कीस साल के तो हो जाओ। ___ जब मैं इक्कीस का हो गया, मैं पहुंच गया। मैंने कहा, कुछ भी मुझे अनुभव नहीं हो रहा है जो आप बताते हैं; इक्कीस साल का हो गया, अब क्या इरादा है ? अब कहिएगा बयालीस साल के हो जाओ! बयालीस साल का हो जाऊंगा तब आगे की बता देना। टालो मत! तुम्हें हुआ हो तो कहो कि हुआ, नहीं हुआ हो तो कहो कि नहीं हुआ। उस दिन न-मालूम कैसे भाव की दशा में थे वे, कोई और था भी नहीं। नहीं तो उनके भक्त बैठे रहते थे, भक्तों के सामने और कठिन हो जाता। उस दिन उन्होंने आंख बंद कर लीं, उनकी आंख से दो आंसू गिर पड़े। उस दिन मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा पैदा हुई।
उन्होंने कहा, मुझे क्षमा करो, मैं झूठ ही बोला था, मुझे भी कहां हुआ है। टालने की ही बात थी। उस दिन भी तुम छोटे थे लेकिन तुम पहचान गए थे, क्योंकि मैं तुम्हारी आंखों से देख रहा था, तुम्हारे मन में श्रद्धा पैदा नहीं हुई थी। तुम भी समझ गए थे, मैं टाल रहा हूं कि बड़े हो जाओ। मुझे भी पता नहीं है। उम्र से इसका क्या
100