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________________ एस धम्मो सनंतनो वहां। कुत्ते को शेर कहा, थोड़ी अतिशयोक्ति की, और आंख बंद करके तो कोई भी नहीं है वहां, किसको तुम भगवान कह रहे हो! न तुम्हें अनुभव है, न किसी को अनुभव है, झूठ पर और महाझूठ की पर्ते जमाए जा रहे हो। बच्चे देखते हैं, सब तरफ झूठ चल रहा है। बाप कहता है कि झूठ मत बोलना और फिर कह देता है-कोई दरवाजे पर आया, किराएदार आ गया-तो पहुंचा देता है बेटे को, कह दो कि पिताजी घर में नहीं हैं। अब बेटा देख रहा है कि यह बात झूठ है। इस सब का क्या अर्थ होता है? इसका अर्थ होता है कि जब कहना हो तो यही कहो कि झूठ नहीं बोलना चाहिए और जब बोलना हो तो जिसमें लाभ हो वही बोलो। यह बात इतनी स्पष्ट है, यह संदेश इतना साफ है। __छोटे बच्चे तक तुम्हारे सत्य को देख लेते हैं, तो बड़े—जो काफी बेईमान हो . गए, जिन्होंने जीवन में काफी अनुभव कर लिया है-वे तुम्हारे सत्य को न देख पाएंगे? ऐसा हुआ, दक्षिण की एक कथा है। दक्षिण में एक बड़े प्रसिद्ध पंडित हुए, पंडित मणि। पंडित मणि कदिरेश चेट्टियार भगवान मुरुगन कार्तिकेय के भक्त थे। एक दिन उनके यहां एक भगत आया। वह गले में रुद्राक्ष की माला पहने, माथे पर भस्म रमाए हुए था और मुंह से मुरुगा-मुरुगा की रट लगा रहा था। उसने पंडित मणि से कहा, मैं भगवान मुरुगन का मंदिर बनवाने की सोच रहा हूं, कल रात भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि चिंता मत करो, पंडित मणि के पास जाओ, तुम्हें जो कुछ भी चाहिए वे देंगे। पंडित मणि ने इस पर भगत से बड़ी विनम्रता से प्रार्थना की कि रातभर मेरे यहां रहिए, सुबह बातें होंगी। __ सबेरे उन्होंने भगत को बुलाकर बताया, महाराज, रात को भगवान ने मुझे भी दर्शन दिए हैं और कहा कि सामने वह जो ताड़ है, उसके नीचे पांच फुट की गहराई पर खजाना गड़ा हुआ है, उसे निकालकर भगत के हवाले कर दो। अगर वहां गुप्त खजाना न मिले तो? भगत ने शंका की। महाराज, पंडित मणि ने कहा, मुझे भी यही शंका हुई थी और मैंने हिम्मत करके भगवान मुरुगन से पूछ भी लिया। उन्होंने फौरन उत्तर दिया कि अगर वहां खजाना न मिले तो वहां भगत जी को गाड़ दो। यह सुनना था कि बगुला भगत लोटा-सोटा उठाकर वहां से भाग गया। न तुम्हें भरोसा है तुम्हारे भगवान का, न तुम्हारे बच्चों को आएगा, न तुम जिनको सलाह देते हो उन्हें आएगा। तुम्हारा जीवन तुम्हारी कथा कहता है। तुम झूठ चला नहीं सकते। झूठ पकड़ा ही जाएगा। अब तुम कहते हो कि 'सलाह देने में मैं बड़ा कुशल हूं।' यह कुशलता महंगी पड़ रही है। यह कुशलता छोड़ो। इस कुशलता से किसी को लाभ नहीं हुआ, हालांकि तुम्हारा जीवन व्यर्थ जाएगा। इस कुशलता के कारण कोई तुम्हें कभी धन्यवाद नहीं देगा। लोग सिर्फ ऊबते होंगे तुम्हारी सलाह से। क्योंकि 98
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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