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धर्म के त्रिरत्न
स्मृति, विचार की स्मृति, भावना की स्मृति, फिर भीतर महल में प्रवेश होता है। उस महल में प्रवेश करके तुम पाओगे बुद्ध को विराजमान। तुम्हें तुम्हारे बुद्ध से मिलन हो जाएगा। इसको बुद्ध ने कहा है, अप्प दीपो भव! अपने दीए बन जाओ। फिर तुम अपने दीए बन जाओगे।
राजा बिंबिसार को इस लड़के को लाने के कारण बुद्ध ने ये सूत्र कहे।
इस कहानी में मैंने एक छोटा सा फर्क किया है, उसकी मैं क्षमा-याचना कर लूं। करना पड़ा। इतना सा फर्क किया है—पंडित और शास्त्रीयजनों को अड़चन होगी-फर्क यह किया है : कथा में ऐसा कहा गया है, कथा ऐसे शुरू होती है कि राजगृह में दो लड़के थे, एक था सम्यक-दृष्टि, दूसरा था मिथ्या-दृष्टि। दोनों साथ खेलते थे। सम्यक-दृष्टि खेलते समय नमो बुद्धस्स का पाठ करता था और मिथ्या-दृष्टि नमो अरिहंताणं का।।
इशारा साफ है। जिसने भी कथा रची होगी, लिखी होगी शास्त्र में, वह यह कह रहा है कि जो बुद्ध का स्मरण करता है वह तो पहुंच जाता है, जो महावीर का स्मरण करता है वह नहीं पहंचता। जिसने कहानी लिखी होगी, उसकी दृष्टि बड़ी क्षुद्र और सांप्रदायिक रही होगी। तो जो नमो बुद्धस्स का पाठ करता है वह तो जीतता था, उसको कहा सम्यक-दृष्टि। और जो नमो अरिहंताणं, जिनों का स्मरण करता था, अरिहंतों का स्मरण करता था, महावीर का, नेमि का, पार्श्व का स्मरण करता था, उसको कहा मिथ्या-दृष्टि। वह हारता था। ____ इतना मैंने फर्क किया है। इतना मैंने अलग कर दिया है। क्योंकि मुझे लगा कि उतनी बात बुद्ध के साथ मेल नहीं खाएगी। क्योंकि बुद्ध का और अरिहंत का एक ही अर्थ होता है। बुद्ध का अर्थ होता है जो जाग गया, अरिहंत का अर्थ होता है जिसने अपने शत्रुओं पर विजय पा ली। ___मूर्छा शत्रु है। मूर्छा ही तो शत्रु है। काम-क्रोध-लोभ-मद-मत्सर शत्रु हैं। शत्रुओं पर विजय कैसे पायी जाती है? जागकर पायी जाती है। बुद्ध का भी एक नाम अरिहंत है। कृष्ण का भी एक नाम अरिहंत है। और मैं तो क्राइस्ट को भी अरिहंत कहता हूं और मोहम्मद को भी अरिहंत कहता हूं। अरिहंत का मतलब ही इतना है-जिसके अब कोई शत्रु न रहे। जिसके भीतर सब शत्रु विदा हो गए। जिसके भीतर सब शत्रु विगलित होकर मित्र बन गए। जिसका क्रोध करुणा बन गया। और जिसकी कामवासना ब्रह्मचर्य बन गयी। जिसने अपने शत्रुओं को अपना मित्र बना लिया। जिसने जहर को रूपांतरित कर लिया। जो उस कीमिया से गुजर गया जहां जहर अमृत हो जाता है।
तो इतना फर्क मैंने किया है। इतना कहानी में मैंने तोड़ दिया। अलग कर दिया। क्योंकि उतनी बात मुझे सांप्रदायिक मालूम पड़ी। और बुद्ध का सांप्रदायिक होने से कोई संबंध नहीं हो सकता है।
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