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एस धम्मो सनंतनो
कहानी बुद्ध ने नहीं लिखी है। कहानी किसी अनुयायी ने लिखी होगी। अनुयायियों की क्षुद्रबुद्धि ने बड़े उपद्रव किए हैं। ऐसी कहानियां जैन-ग्रंथों में भी हैं, जिनमें बुद्ध को गाली दी गयी है। ऐसी कहानियां बुद्ध-ग्रंथों में हैं, जिनमें जैनों को गाली दी गयी है। ये ओछी बातें हैं। धर्म बड़ा विराट है। और जब भी मुझे ऐसा लगता है कि किसी शास्त्र में, किसी सूत्र को बदलने की जरूरत है, तो मैं जरा भी हिचकिचाता नहीं। मेरी शास्त्र के प्रति कोई निष्ठा ही नहीं है। मैं शास्त्रीय नहीं हैं। मैं पूरी स्वतंत्रता मानता हूं अपनी। क्योंकि मेरी निष्ठा बुद्ध के प्रति है, शास्त्र के प्रति नहीं है।
इस कहानी को पढ़ते वक्त मुझे लगा कि अगर बुद्ध भी इस कहानी को पढ़ेंगे तो इतना हिस्सा छोड़ देंगे, उतना मैंने छोड़ दिया है। अगर मैं जिम्मेवार हूं किसी के प्रति तो बुद्ध के प्रति, और किसी के प्रति नहीं। अगर महावीर के वचनों में मुझे कुछ वचन ऐसे लगते हैं जो कि महावीर के वचन नहीं हो सकते, नहीं होने चाहिए, मैं उनको छोड़ देता हूं। कभी मुझे ऐसा लगता है कि यह अर्थ नहीं किया जाना चाहिए, तो अर्थ बदल देता हूं। इसलिए मुझसे पंडित नाराज भी हैं। वे कहते हैं कि मैं शास्त्रों में हेर-फेर करता हूं।
शास्त्र में मेरी कोई निष्ठा नहीं है। शास्त्र मेरे लिए खिलवाड़ है। मेरी निष्ठा शास्त्र से बहुत पार है। मेरी निष्ठा तो अनुभव में है। मेरी निष्ठा मेरे भीतर है। जो मेरी निष्ठा पर कस जाता है, मुझे लगता है कि यह बात मैं भी कह सकता हूं, तो ही मैं बुद्ध से कहलवाऊंगा। मैं भी कह सकता हूं, तो मैं महावीर से कहलवाऊंगा।
इसलिए जैन मुझसे प्रसन्न नहीं हैं। क्योंकि वे कहते हैं, महावीर से मैंने ऐसी बातें कहलवा दी जो महावीर ने नहीं कही हैं। उनको पता नहीं है कि महावीर और मुझमें ढाई हजार साल का फर्क हो गया! आज महावीर लौटते तो जो मैं कह रहा हूं, वही कहते। ढाई हजार साल बाद इतना फर्क न पड़ता! महावीर जड़बुद्धि नहीं थे। कोई ग्रामोफोन के रिकार्ड नहीं थे कि वही का वही दोहराते रहते। ____ मुझसे बौद्ध नाराज हैं। मैं नागपुर में ठहरा था तो एक बड़े बौद्ध भिक्षु हैं, बड़े पंडित हैं—आनंद कौशल्यायन-वह मुझे मिलने आए। उन्होंने कहा कि आप कुछ ऐसी बातें कहते हैं जो शास्त्र में नहीं हैं। किस शास्त्र में हैं? आपने कुछ ऐसी बातें जोड़ दी हैं जो कहीं भी नहीं लिखी हैं। मेरी जिंदगी शास्त्र पढ़ते हो गयी।
तो मैंने उनसे कहा, न लिखी हों तो लिख लेनी चाहिए, क्योंकि शास्त्र किसी ने लिखे हैं। तुम इतना और जोड़ लो। मैं बुद्ध का नया संस्करण हूं। संस्करणों में थोड़ा फर्क हो जाता है न! वह तो बहुत नाराज हो गए। कहने लगे, शास्त्र में कैसे कुछ जोड़ा जा सकता है ! मैंने कहा, मैं जोडूंगा, मैं घटाऊंगा। क्योंकि जो बात मुझे लगती है ओछी है, वह कैसे बुद्ध से कहलवाऊं? अन्याय हो जाएगा। उसके लिए बुद्ध फिर मुझे कभी क्षमा न कर सकेंगे।