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एस धम्मो सनंतनो
कदम उठाया, कि दायां कदम उठाया।
अगर कोई वर्ष दो वर्ष काय - स्मृति में उतरे तो चकित हो जाता है। लोग पूछते हैं, कामवासना कैसे छूटे ? कामवासना सीधे नहीं छूटती, क्योंकि कामवासना काया के प्रति बेहोशी का हिस्सा है। जब काया की बेहोशी टूटती है तो कामवासना छूटती है और क्रोध भी तभी छूटता है। आक्रमक भाव भी तभी छूटते हैं, हिंसा भी तभी छूटती है।
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तो पहला, काया के प्रति स्मृति । दूसरा
'जिनका मन दिन-रात सदा अहिंसा में लीन है, वे गौतम के शिष्य सदा सुप्रबोध के साथ सोते और जागते हैं।'
दूसरी बात, विचार | पहली बात देह, दूसरी बात मन । मन हिंसात्मक है। मन सदा ही हिंसा की सोचता है - किससे छीन लूं ! किससे झपट लूं ! किसको मजा चखा दूं ! मन प्रतियोगिता है, कांपिटीशन है, स्पर्धा है; एंबीशन, महत्वाकांक्षा है। मन आक्रामक है। मन सदा आक्रमण की योजनाएं बनाता रहता है। कैसे मकान बड़ा कर लूं! कैसे जमीन बड़ी कर लूं ! कैसे तिजोड़ी बड़ी कर लूं ? स्वभावतः, छीनना पड़ेगा तभी कुछ बड़ा होगा।
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तो बुद्ध कहते हैं, मन की हिंसा के प्रति जागो। और अहिंसा के भाव में प्रतिष्ठा लाओ। यहां न कुछ कमाने जैसा है, न जोड़ने जैसा, न बढ़ाने जैसा। यहां सब बढ़ाया, न बढ़ाया बराबर हो जाता है। यहां की दौलत दौलत नहीं। यहां का राज्य राज्य नहीं। अनाक्रामक बनो। हिंसा है आक्रमण, अहिंसा है प्रतिक्रमण । अंदर लौटो, बाहर मत जाओ । ठहरो भीतर। विचार की हिंसा को ठीक से समझो। जैसे-जैसे विचार की हिंसा समझ में आएगी और अहिंसा का भाव तैरेगा भीतर, वैसे-वैसे तुम पाओगे, दूसरी परिधि भी टूट गयी। फिर तीसरी परिधि है.
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'जिनका मन दिन-रात सदा भावना में लीन रहता है, वे गौतम के शिष्य सदा सुप्रबोध के साथ सोते और जागते हैं । '
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फिर तीसरी भाव की दशा है, भावना की । बुद्ध ने उसे ब्रह्म-विहार कहा है। उन भावनाओं में डूबो जो ब्रह्म के करीब ले आएंगी। जैसे करुणा, सहानुभूति, समानुभूति, दया । उन भावनाओं में डूबो, जिनसे तुम दूसरों से टूटते नहीं, जुड़ते हो । उन भावनाओं में डूबो, जिनसे धीरे-धीरे तुम्हारे भीतर शांति और आनंद घना होता है । ब्रह्म में विहार करो। एक में विहार करो, अनेक का भाव छोड़ो। कोई मेरा शत्रु नहीं है, सभी मेरे मित्र हैं। मैत्री - भावना, मित्रता का भाव फैलाओ। जो सुख मैं चाहता हूं, वही सब को मिले। और जो दुख मैं नहीं चाहता हूं, वह किसी को भी न मिले। ऐसी भावनाओं में डूबो ।
धीरे-धीरे भावना में डूबते - डूबते तीसरी सीढ़ी भी पार हो जाती है। काया की
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