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________________ धर्म के त्रिरत्न पहली तीन बातें अपने से बाहर के लिए-बुद्ध के लिए, संघ के लिए, धर्म के लिए। दूसरी तीन बातें अपने भीतर के लिए। 'जिनकी स्मृति दिन-रात सदा अपनी काया की स्मृति में लीन रहती है...।' बाडी अवेयरनेस। उठते हैं, बैठते हैं, चलते हैं, लेकिन ध्यान रखते हैं, मेरी देह से क्या हो रहा है! ___ 'जिनकी स्मृति दिन-रात सदा काया के प्रति जागरूक रहती है, वे गौतम के शिष्य सदा सुप्रबोध के साथ सोते और जागते हैं।' बुद्ध का इस पर बड़ा जोर था। काया हमारी पहली परत है। परत के भीतर परतें हैं। काया पहली परत है। दूसरी परत विचार की है। तीसरी परत भाव की है। तीन परतें हैं—शरीर, मन, हृदय। इन तीनों के पार हमारे असली सम्राट का निवास है। इन तीन दीवालों के पार भगवत्ता विराजमान है। इन तीन परकोटों को पार करना है। तो परकोटों को पार करने के लिए स्मृति चाहिए। ___ पहले काय-स्मृति। उठो तो जानना कि उठे, बैठो तो जानना कि बैठे। भोजन करो तो जानना कि भोजन कर रहे हो, स्नान करो तो जानना कि स्नान कर रहे हो। तुम्हारा शरीर यंत्रवत न रहे। तुम्हारे शरीर की प्रत्येक प्रक्रिया बोधपूर्वक होने लगे। कठिन है। भूल-भूल जाओगे। करना कोशिश-रास्ते पर चलते जब तुम लौटकर जाओ तो जरा कोशिश करना कि थोड़ी देर याद रखो कि शरीर चल रहा है। दो सेकेंड याद रहेगा, भूल गए; मन कहीं और चला गया, फिर छिटक गया; फिर थोड़ी देर बाद याद आएगी कि अरे, मैं तो कुछ और सोचने लगा! फिर पकड़कर शरीर पर ध्यान को ले आना। ___ वर्षों की चेष्टा से काय-स्मृति सधती है। और जब काय-स्मृति सध जाती है तो जीवन में बहुत सी बातें अपने आप समाप्त हो जाती हैं। जैसे क्रोध समाप्त हो जाएगा। कामवासना समाप्त हो जाएगी। लोभ समाप्त हो जाएगा। क्योंकि ये सब काया की बेहोशी हैं। कामवासना उठती है काया की बेहोशी से। जब तुम्हारे भीतर कामवासना उठती है तो काया की बेहोशी तुम पर हावी हो जाती है। अगर तुम चलते-उठते-बैठते, हाथ भी हिलाते हो तो होशपूर्वक हिलाते हो कि यह मेरा हाथ हिल रहा है...। तुम जरा इसका प्रयोग करना, तुम बड़े चकित होओगे। यह हाथ उठाया मैंने, इसको अगर होशपूर्वक उठाया, जानते हुए कि हाथ उठा रहा हूं, आहिस्ता-आहिस्ता उठाया, तब तुम चकित होओगे कि हाथ के उठाने में भी भीतर बड़ी शांति मालूम होगी। इसी आधार पर चीन में ताइ ची का विकास हुआ। बुद्ध की काय-स्मृति के आधार पर। प्रत्येक क्रिया शरीर की बहुत धीमे-धीमे करना। __बुद्ध कहते हैं अपने भिक्षु से, आहिस्ता चलो, धीमे चलो, ताकि स्मृति साध सको। आहिस्ता-आहिस्ता एक-एक कदम उठाओ, जानते हुए उठाओ कि बायां 89
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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