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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम्हारे शब्दों में एक गुनगुनाहट आ जाएगी। और तुम्हारे शब्दों में एक सौंदर्य होगा, जो इस जगत का नहीं है। ___लेकिन शून्य से आए शब्द तो ही। पंडित का शब्द तो गंदा होता है, बासा होता है। ज्ञानी का शब्द ! और ज्ञानी का अर्थ यही है कि जिसने अपने भीतर निःशब्द होने की कला सीख ली। पहले चप हो जाओ। पहले ऐसे चुप हो जाओ कि चुप्पी सनातन जैसी मालूम होने लगे, शाश्वत मालूम होने लगे। फिर उस चुप्पी में जो अनुभव हो, उसे बांधना शब्द में। तब तुम्हारे पास बांधने को कुछ है। नहीं तो अभी तो कोरे शब्द हैं, जिनके भीतर कुछ भी नहीं है-खाली डिब्बे हैं। ___यह जो हत्थक थे, शब्द के धनी थे और मौन में दरिद्र थे, लेकिन स्वभावतः बड़े अहंकारी थे। शब्द का धनी हो आदमी तो अहंकारी हो जाता है। आदमी भाषा का गलाम है। तुमने यह बात देखी? कि समाज में वे लोग बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जो शब्द के धनी हैं। नेता बन जाएं, गुरु बन जाएं। जो शब्द का धनी है, वह सब जगह प्रथम हो जाता है। क्यों? वह बोलने में कुशल है। उसके पास एक दक्षता है। बोलते सभी हैं, लेकिन कोई जो बोलने में कुशल हो जाता है, वह दूसरों को पीछे डाल देता है, वह आगे निकल जाता है। अगर तुम बोलने में कुशल नहीं हो तो एक बात पक्की है कि तुम जिंदगी में कहीं भी किसी प्रतिस्पर्धा में आगे खड़े न हो सकोगे। मनुष्य का सारा समाज भाषा से बना है। और भाषा में जो जितना कुशल होता है, वह उतना आगे हो जाए तो आश्चर्य नहीं है। इसलिए जो लोग बोलने में कुशल होते हैं, स्वभावतः भीतर एक अहंकार का जन्म हो जाता है कि मैं कुछ हूं। अगर शून्य से शब्द आएं, तो यह अहंकार पैदा नहीं होता। तब तो एक उलटी बात घटती है। समझ लेना इसे ठीक से। अगर शून्य से शब्द आएं तो ऐसा लगता है हर बार बोलकर कि जो कहना था, वह कह नहीं पाया। अहंकार की तो बात दूर, एक बड़ी विनम्रता पैदा होती है कि जो कहना था, कह नहीं पाया। क्योंकि जो जाना जाता है भीतर, वह इतना बड़ा है कि शब्दों में अंटता नहीं, समाता नहीं। शब्द छोटे-छोटे पड़ जाते हैं। ___ मुझसे लोग पूछते हैं कि आप रोज कैसे बोलते हैं? रोज इसीलिए बोल पाता हूं, कल बोला, देखा कि नहीं कह पाया, फिर आज बोलता हूं; चलो, एक और कोशिश करें, शायद अब हो जाए। फिर कल बोलूंगा। क्योंकि मुझे पक्का पता है कि यह होने वाला नहीं है। यह कुछ बात ऐसी है कि कही जाती है, लेकिन कही नहीं जा सकती। लाओत्सू ने कहा है, जो कहा जा सके, वह सत्य नहीं। ___फिर भी बुद्ध ने, लाओत्सू ने, कृष्ण ने, महावीर ने, क्राइस्ट ने कहा तो है। कहने की चेष्टा की है। लेकिन ये सारे लोग विनम्र हैं इस संबंध में, क्योंकि ये जानते हैं 76
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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