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________________ मन की मृत्यु का नाम मौन होता। तुम्हारी भावदशा उसे धार्मिक या अधार्मिक करती है। ____ यह भिक्षु हत्थक तर्क में कुशल और ध्यान से अपरिचित। शब्द के धनी थे और मौन में दरिद्र। अक्सर ऐसा हो जाता है। और जब तक शब्द मौन से न आए, तब तक व्यर्थ होता है। जब तक शब्द तुम्हारे भीतर के शून्य में पगा हुआ न आए, तब तक उसमें कुछ भी नहीं होता, बेजान होता है। जब तुम्हारे भीतर की रसधार में पगकर आता है, जब तुम्हारे शून्य के गर्भ से उठता है शब्द, तब उस शब्द में सार होता है। शब्द में तो सार होता ही नहीं, सार तो शून्य में होता है। लेकिन जब शून्य से शब्द उठता है तो शब्द के आसपास लिपटा हुआ थोड़ा सा शून्य भी चला आता है। जैसे कि तुम बगीचे से निकले, तुम्हें याद हो या न हो याद, घर जाकर तुम पाओगे-वस्त्रों में थोड़ी गंध है। फूलों की गंध वस्त्रों को पकड़ गयी। ऐसे ही शब्द जब किसी शून्य हृदय में उठता है, तो शून्य की गंध शब्द को पकड़ जाती है। वैसे शब्द में कुछ सार होता है। अर्थात जब मौन से शब्द निकलता है, तभी सार्थक होता है। और जब मौन से शब्द नहीं निकलता, शब्दों से ही शब्द निकलते हैं, बात में से बात निकलती है, शब्दों के साहचर्य से शब्द निकल आते हैं, तो समझना कि तुम अपना भी समय व्यर्थ कर रहे हो, दूसरों का भी समय व्यर्थ कर रहे हो। तुम अपना कूड़ा-करकट दूसरों में डाल रहे हो। ... लोग नासमझ हैं। किसी के घर में जाकर तुम कूड़ा-करकट डालो तो झगड़ा हो जाए। लेकिन किसी की खोपड़ी में कितना ही कूड़ा-करकट डालो, कोई झगड़ा नहीं होता। वह बड़े प्रेम से सुनता है, वह कहता है कि और सुनाइए! और गपशप क्या गांव में चल रहा है! हम एक-दूसरे के सिर में कचरा डालते रहते हैं। हम एक-दूसरे के सिर का उपयोग कचरे की टोकरी की तरह करते हैं। शब्द के धनी थे यह हत्थक और मौन में थे दरिद्र। और अक्सर ऐसा हो जाता है कि भीतर मौन की दरिद्रता हो तो आदमी बड़ा बकवासी हो जाता है। फिर छिपाए भी कैसे! अपनी नग्नता को छिपाए भी कैसे! शब्दों के वस्त्र ओढ़ लेता है। शब्दों के आधार पर भूले रहता है कि मैंने मौन नहीं जाना। और मौन में है सौंदर्य, और मौन में है आनंद। और मौन में ही सत्य की झलक है। तो जिनके पास मौन न हो और केवल शब्द हों, उनसे सावधान होना। और अपने भीतर भी देखना। वही बोलना, जो तुम्हारे मौन में जन्मा हो। तो तुम पाओगे, तुम्हारे शब्दों में एक बल आ गया। तुम्हारे शब्दों में एक प्रगाढ़ शक्ति का जन्म हो जाएगा। तुम्हारे शब्द शक्ति के वाहक बन जाएंगे। तुम्हारा एक-एक शब्द तीर हो जाएगा। जिस हृदय पर लग जाएगा, उस हृदय में नयी स्फुरणा कर जाएगा। और तुम्हारे शब्दों में एक काव्य आ जाएगा। तुम चाहे कविता जानते हो या न जानते हो,
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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