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मन की मृत्यु का नाम मौन
आड़ में बच जाए।
आज के बुद्ध के सूत्र मन के ऐसे ही आयोजनों के संबंध में हैं। इनसे तुम्हारे जीवन में बड़ी रोशनी आ सकती है।
पहला दृश्यः
एक भिक्षु थे— हत्थक। वे स्वयं को सत्य का अथक खोजी मानते थे।
स्वभावतः, जो अपने को सत्य का अथक खोजी माने, वह शास्त्रों में उलझ जाता है। जैसे कि शास्त्रों में सत्य हो। निकले सत्य की खोज को, खो जाते हैं शास्त्रों के अरण्य में। चाहते तो थे गहरे में जान लें कि जीवन क्या है, चाहते तो थे कि जान लें यह विराट अस्तित्व क्या है, लेकिन आंखें अटक जाती हैं शास्त्रों में। तो हत्थक बड़े शास्त्री बन गए। सत्य की खोज मन ने झुठला दी। मन ने कहा, सत्य चाहिए, शास्त्र में झांको। सत्य चाहिए, तो सारे सिद्धांतों में झांको।
सत्य के खोजी अक्सर पंडित बन जाते हैं। वह मन ने धोखा दे दिया। सत्य की खोज का शास्त्र से क्या लेना-देना! शास्त्र से बड़ी तो सत्य के मार्ग में कोई और बाधा नहीं है! हां, तुम सत्य को जान लो तो शायद तुम शास्त्र में भी सत्य को पा सको, लेकिन इससे उलटा नहीं हो सकता कि तुम सत्य को बिना जाने और शास्त्र में षा सको। यह असंभव है। सत्य को जान लो, फिर शास्त्र को देखो तो शायद तुम्हें गवाहियां मिल जाएं कि हां, ठीक, जो मैंने जाना वही औरों ने भी जाना है। लेकिन तुम्हारा जानना प्राथमिक है। दूसरों का जानना दोयम, नंबर दो की बात है। तुमने न जाना हो तो दूसरों ने कितना ही जाना हो, इससे कुछ फर्क न पड़ेगा। और दूसरे जो कहेंगे, उसे तुम समझोगे कैसे?
कृष्ण की गीता पढ़ोगे, समझोगे तो अपनी ही गीता। अर्थ तो तुम अपने डालोगे। अर्थ तो कृष्ण के नहीं हो सकते। कृष्ण का अर्थ जानने के लिए तो तुम्हें कृष्णमयी चेतना में उतरना होगा। कृष्ण का अर्थ कहां से आता है? शब्दकोश से थोड़े ही आता है। काश, शब्दकोश से आता तो बात कितनी आसान हो जाती! __ कृष्ण का अर्थ आता है कृष्ण के चैतन्य से। तुम्हारा अर्थ आएगा तुम्हारे चैतन्य से। पढ़ोगे कृष्ण की गीता, लेकिन पढ़ोगे अपनी ही गीता। ऊपर-ऊपर दिखेगा कृष्ण के शब्द पढ़ रहे हैं, अर्थ कौन डालेगा? उन शब्दों पर रंग कौन चढ़ाएगा? उन शब्दों की व्याख्या. कौन करेगा? उन शब्दों की व्याख्या तो तुम करोगे।
कृष्ण के शब्द और व्याख्या तुम्हारी! आकाश को घसीटकर तुम अपने आंगन में ले आओगे। कोई उपाय नहीं है कृष्ण के शब्द से जाने का; न क्राइस्ट के शब्द से, न बुद्ध के शब्द से। अगर सत्य तक जाना हो, तो निःशब्द से मार्ग है।
एक भिक्षु थे-हत्थक। वे स्वयं को सत्य का खोजी मानते थे। स्वभावतः शास्त्रों में उलझ गए। विवाद उनका जीवन बन गया। शास्त्रार्थ उनकी चर्या हो गयी।
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