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एस धम्मो सनंतनो
तल इतना नीचा है कि तुम इस जीवन में निरानंद जीओगे। तुम्हारे जीवन में आनंद न हो सकेगा। __तो मैं यह नहीं कहता कि तमाखू खाना पाप है। मैं कहता हूं, तमाखू खाना मूढ़ता है, बुद्धिहीनता है, बोध की कमी है। पाप तो मैं कहता ही नहीं। पाप में तो निंदा हो गयी। पाप में तो दंड हो गया।
आखिरी प्रश्नः
जिसे सुनाने को अति आतुर आकुल युग-युग से मेरा उर एक गीत सपनों का, आ, तेरी पलकों पर गाऊं आ, तेरे उर में छिप जाऊं! फिर न पड़े जगती में गाना फिर न पड़े जगती में आना एक बार तेरी गोदी में सोकर फिर मैं जाग न पाऊं, आ, तेरे उर में छिप जाऊं!
ठीक है आकांक्षा। ऐसा हो सकता है। लेकिन बुद्ध के मार्ग पर प्रार्थना करने से
कुछ भी नहीं होता। बुद्ध के मार्ग पर तो ध्यान करना होगा। तुम्हारे गीत का स्वर प्रार्थना का है। तुम कहते हो'जिसे सुनाने को अति आतुर
आकुल युग-युग से मेरा उर एक गीत सपनों का, आ, तेरी पलकों पर गाऊं आ, तेरे उर में छिप जाऊं!'
बुद्ध के मार्ग पर प्रार्थना से कुछ द्वार नहीं खुलता। प्रार्थना करने से बुद्ध कहते हैं, कुछ भी न होगा। प्रार्थना तो वासना का ही छिपा रूप है।
इसलिए तुम कहते हो'फिर न पड़े जगती में गाना फिर न पड़े जगती में आना' -यह भी आकांक्षा ही है। बुद्ध कहते हैं, जब तक तुम्हारे मन में यह आकांक्षा