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________________ क्षण है द्वार प्रभु का है कि फिर न पड़े जगती में आना, तब तक तुम आते रहोगे। तब तक आना ही पड़ेगा। यह वासना भी जाने दो। तुम निर्वासना होकर जीओ, तुम यहां इस क्षण जीओ-शांत, प्रसन्न, आनंदित नहीं आओगे। लेकिन इसको जीवन का लक्ष्य मत बना लो कि फिर न आना पड़े। क्योंकि अगर फिर न आना पड़े, यह तुम्हारे जीवन का लक्ष्य हो गया, तो इसी से चिंता पैदा होगी, इसी से तनाव पैदा होगा, इसी से घबड़ाहट पैदा होगी कि सफल हो पाऊंगा कि असफल हो जाऊंगा, ऐसा होगा कि नहीं होगा; कैसे होगा, कैसे न होगा। तुम फिर चक्कर में पड़ गए, फिर संसार शुरू हो गया। मोक्ष के नाम पर भी संसार शुरू हो जाता है। धन के कारण ही लोग दीवाने नहीं हैं, धर्म के कारण भी दीवाने हैं। बुद्ध की तो बात बड़ी साफ-सुथरी है, गणित जैसी, विज्ञान जैसी। बुद्ध कहते हैं, वासना भटकाती है। समस्त वासना भटकाती है। निरपवाद रूप से हर एक वासना भटकाती है, यह भी वासना है—फिर न पड़े जगती में आना। यह भी वासना है। क्यों? क्यों फिर न आना पड़े? यह आग्रह क्यों? यह जिद्द क्यों? बुद्ध कहते हैं, कोई भी वासना हो, वह संसार बना देती है। तुम वासना के प्रति जाग जाओ और समझो कि हर वासना से पीड़ा पैदा होती है, चिंता पैदा होती है, तनाव पैदा होता है, संताप पैदा होता है, तो फिर ऐसे जीओ कि बिना किसी वासना के। क्षण-क्षण जीओ, क्षण के आगे की मांग मत करो। एक-एक पल गुजरने दो, उस पल से ज्यादा मांगो ही मत। कुछ मांगो ही मत, जी लो, साक्षीभाव से, द्रष्टा बनो। और तुम पाओगे, धीरे-धीरे यही द्रष्टा का भाव इतना सघन हो गया कि इसी द्रष्टा के भाव में तुम संसार के पार हो गए। फिर न आना पड़ेगा। संसार में रहते हुए संसार से मुक्त हो जाने का उपाय है। यहां रहते हुए यहां से बाहर हो जाने का उपाय है। जैसे जल में कमल अलग हो जाता है, ऐसे ही साक्षीभाव है। बुद्ध का सारा उपदेश जागरूकता, चैतन्य, साक्षीभाव के लिए है। प्रार्थना की वहां कोई गुंजाइश नहीं है। ध्यान और समाधि उनके वचनों का सार है। आज इतना ही।
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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