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________________ क्षण है द्वार प्रभु का खाना, मगर यह इन्हीं को समझने दो। यह बोध इन्हीं को आने दो। सदा ध्यान रखो, दूसरे व्यक्ति के जीवन में बहुत हस्तक्षेप करना सदव्यवहार नहीं है। और उन लोगों के जीवन में हस्तक्षेप करना जो तुम्हारे प्रेमपात्र हैं, एकदम गलत है। उनको स्वतंत्रता दो। उनको स्वयं होने का हक दो। और तुम्हारे और तुम्हारे पति के बीच ऐसा कोई तनाव न बने, किसी छोटी बात का तनाव न बने, तो तुम्हारे द्वार खुले रहेंगे। प्रेम बढ़ेगा, प्रेम सघन होगा, तुम दोनों एक-दूसरे के प्रति आनंदभाव से मग्न होओगे, तो शायद तमाखू छूट जाएगी। छूट जानी चाहिए। और अगर न छूटे तो कुछ परेशान होने का कारण नहीं है। मेरी दृष्टि को समझना! फिर दूसरी बात मैं कहना चाहूंगा, यह तुम्हारे पति को पता चलना चाहिए कि उसकी तकलीफ क्या है, वह मुझसे पूछे। उसके पास जबान है, उसके पास बुद्धि है। उसे पूछने दो। प्रत्येक को मुझसे सीधा जुड़ने दो, बीच के मध्यस्थ कोई न बनें। अगर शरमाता है पूछने में, तो छोड़ो। जब उसकी शरम मिटेगी, पूछेगा। यहां मेरे होने का उपयोग ही यही है कि तुम अपने जीवन की समस्याओं को मुझसे सीधा-सीधा रख लो, शायद मैं कुछ सलाह दूं, वह काम पड़ जाए। और ध्यान रखना, मैं सिर्फ सलाह देता हूं, मैं आदेश नहीं देता। मैं ऐसा नहीं कहता कि ऐसा करो ही। और मैं ऐसा भी नहीं कहता कि ऐसा न किया तो कोई बहुत बड़ी दुर्घटना हो जाने वाली है। कुछ नहीं हो जाने वाला है। आदमी के पाप इतने साधारण हैं कि नरक की तो तुम फिकर छोड़ दो, नरक तो तुम जाने वाले नहीं। क्योंकि मैं मानता हूं कि परमात्मा, अस्तित्व की करुणा इतनी अपार है कि तुमने छोटे-मोटे उपद्रव किए, कोई आदमी ताश खेलकर पैसा दांव पर लगा दिया-नरक में पड़े हैं! तुमने कुछ ऐसा किया नहीं खास। तुम्हारे जीवन के छोटे-मोटे कृत्य क्षम्य हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि मैं यह कह रहा हूं कि तुम इनको करते जाओ। मैं सिर्फ इतना ही कह रहा हूं कि इनके कारण बहुत चिंता न लो, समझ आए। ये छोटे-मोटे कृत्य हैं, लेकिन ये तुम्हारे जीवन के आनंद को कम कर रहे हैं। . अब जैसे एक आदमी को चिंता पकड़ती है, बेचैनी पकड़ती है और वह सिगरेट पीने लगता है; तो सिगरेट पीने से बेचैनी तो मिटेगी नहीं, सिर्फ बेचैनी भूल जाएगी थोड़ी देर के लिए। यह कोई बुद्धिमानी न हुई। अगर बेचैनी है तो बेचैनी को समझने की कोशिश करो-क्यों है? उसके कारण में उतरो। उसका निदान करो। बिना बेचैनी के जीने की संभावना है, ध्यान करो। जितनी देर सिगरेट पीते हो, उतनी ही देर अगर ध्यान कर लो तो तुम्हारा जीवन रूपांतरित हो जाए। जितनी देर तुम तमाखू चबाते हो, उतनी देर अगर साक्षीभाव रख लो, तो तुम्हारे तनाव विसर्जित हो जाएं, सदा के लिए विसर्जित हो जाएं। फिर ये छोटे-मोटे, बच्चों जैसे उपाय करने की जरूरत न रहे। ये उपाय करने पड़ रहे हैं, उससे पता चलता है कि तुम्हारी चेतना का तल बड़ा नीचा है। नरक तुम जाओगे, यह मैं नहीं कहता, लेकिन तुम्हारी चेतना का
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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