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________________ क्षण है द्वार प्रभु का बीज में एक भी फूल नहीं खिला है, और यह गुलमोहर दुल्हन की तरह सजा है। और बीज जरा सा, काला-कलूटा! कुछ दिखता नहीं इसमें, इसमें से कुछ हो भी सकता है इसकी भी संभावना नहीं मालूम पड़ती, कंकड़-पत्थर जैसा मालूम पड़ता है। लेकिन यह वृक्ष उसी से हुआ है। बीज और वृक्ष में एक यात्रा है। न्याय बीज है, करुणा उस बीज का पूरा का पूरा प्रस्फुटित हो जाना है, पूरा प्रफुल्ल हो जाना है, पूरा खिल जाना है। दुनिया में अन्याय है, अभी तो न्याय ही नहीं, इसलिए करुणा की तो बात ही करनी असंभव है। दुनिया की हालत अन्याय की है, अभी तो न्याय ही हो जाए तो बहुत। लेकिन जब न्याय होने लगेगा तो तत्क्षण हमें करुणा की बात सोचनी पड़ेगी। करुणा मनुष्य-जीवन का अंतिम लक्ष्य है। वहां तक पहुंचना ही चाहिए। उस ऊंचाई तक जब तक हम न पहुंचें, हमारे जीवन में फूल नहीं लगते हैं, कमल नहीं खिलते। ___ करुणा में न्याय समाविष्ट है। लेकिन न्याय में करुणा अनिवार्य रूप से समाविष्ट नहीं है। न्याय तो शुरुआत है, न्याय तो अन्याय से छुटकारे का उपाय है। फिर जब अन्याय से कोई छूट जाए, तो उतने से ही राजी मत हो जाना। इसको ऐसा समझो। एक आदमी बीमार है। इस बीमार आदमी की बीमारी अलग हो जाए, इतना ही काफी नहीं है। स्वास्थ्य का आविर्भाव भी होना चाहिए। सिर्फ बीमारी का अलग हो जाना स्वस्थ हो जाना नहीं है। स्वास्थ्य की एक विधायकता है। स्वास्थ्य का एक झरना है, जो भीतर बहना चाहिए। ___तुम्हें भी पता होगा। कई बार तुम कह सकते हो कि मैं बीमार नहीं हूं, लेकिन स्वस्थ हूं, यह भी नहीं कह सकता। कई बार तुम कह सकते हो, मैं दुखी नहीं हूं, लेकिन आनंदित हूं, यह भी नहीं कह सकता। वह कौन सी घड़ी होती है जब तुम कहते हो कि मैं दुखी नहीं हूं, और आनंदित हूं, यह भी नहीं कह सकता? दुख तो नहीं है, दुख तो नहीं होना चाहिए, लेकिन यही थोड़े ही काफी है। दुनिया में इतना ही थोड़े काफी है कि लोग दुखी न हों। दुनिया में इतमा पर्याप्त नहीं है। यह तो होना ही चाहिए कि लोग दुखी न हों, यह शर्त तो पूरी होनी ही चाहिए, लेकिन फिर एक और बड़ी शर्त है कि सुखी भी हों। सुख और बड़ी शर्त है। उसके लिए दुख का मिट जाना रास्ता बनेगा। __ करुणा के लिए न्याय रास्ता बनाता है। वह न्याय के द्वारा करुणा के आगमन की संभावना खुल जाती है। अन्यायी आदमी तो कभी करुणावान नहीं हो सकता। न्यायी आदमी कभी हो सकता है। लेकिन न्याय पर ही रुक नहीं जाना है। यह मत सोचना कि बस मंजिल आ गयी। बुद्ध ने कहा है, करुणा परम मंजिल है। जब तक जीवन में सतत करुणा प्रवाहित न होने लगे, तब तक समझना, अभी कहीं कुछ कमी है। तब तक समझना, अभी कहीं कुछ कठोर है। तब तक समझना, कहीं कुछ अवरोध है। 59
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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