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________________ एस धम्मो सनंतनो और मैंने मरने की सोच रखी है, अब मैं इस पर बैठकर जलकर मर जाऊंगा। उसने कहा, भई, कहीं और मरो, इधर हमारे मोहल्ले-पड़ोस में बदबू फैलेगी और झंझट खड़ी होगी, तुम कहीं और जाओ जहां मरना हो। उसने कहा, हद्द हो गयी! जीने भी नहीं देते, मरने भी नहीं देते। तुम जाओगे कहां? जहां भी तुम होओगे, वहां ही संसार है। संसार तो सब तरफ फैला हुआ है। इसलिए कहीं जाने की भी बात नहीं है, सिर्फ भीतर जागने की बात है, फिर तुम जहां हो वहीं मुक्त हो। तुम कहते हो, 'संसार के बंधन बहुत मजबूत हैं।' बंधन हैं ही नहीं, मजबूत तो होंगे कैसे। मैंने रुपए और तुम्हारे बीच बंधन कभी देखा नहीं, कोई हथकड़ी थोड़े ही डाल रखी है रुपए ने तुम्हें! ____ एक सूफी फकीर था बायजीद। अपने शिष्यों को लेकर एक गांव से गुजर रहा था। और उसकी आदत थी ऐसी कि कोई अवसर बन जाए, तो वह जल्दी शिष्यों को खड़ा करके उनको कुछ समझा देता था। मौके पर समझा देता था, वैसे कोई उपदेश नहीं देता था। देखा एक आदमी एक गाय को लिए जा रहा है। रस्सी बांध रखी है गाय के गले में और चला जा रहा है। उसने उस आदमी से कहा, रुक भाई! जरा मेरे शिष्यों को उपदेश देने दे। घेरकर वे खड़े हो गए गाय को और आदमी को। और बायजीद ने अपने शिष्यों से पूछा कि तुम मुझे यह बताओ कि गाय ने आदमी को बांधा है कि आदमी ने गाय को बांधा है? कौन किसका गुलाम है? गाय आदमी से बंधी है कि आदमी गाय से बंधा है? कौन किसका मालिक है? __स्वभावतः, शिष्यों ने कहा, बात जाहिर है कि आदमी मालिक है। और आदमी ने गाय को गुलाम बनाया हुआ है। तो बायजीद ने कहा कि देखो, मैं यह गाय की रस्सी काट देता हूं-उसने बीच से रस्सी काट दी, गाय तो भाग खड़ी हुई और वह आदमी गाय के पीछे भागा कि भई, यह किस तरह की गड़बड़ है! तो बायजीद ने कहा, देखते हो, अब कौन किसके पीछे भाग रहा है! अगर यह आदमी मालिक था, तो गाय इसके पीछे जाती, यह मालिक नहीं है। गाय मालिक है और यह आदमी गुलाम है। इस आदमी को भी यही भ्रांति है कि मैं मालिक हूं। मगर अब असलियत खुल गयी, रस्सी काटकर देख ली। गाय तो अपने रास्ते पर चली गयी, गाय लौटकर कभी इस आदमी की तरफ देखेगी ही नहीं। भूल-चूककर इसके पास न आएगी। अब यह आदमी उसके पीछे भाग रहा है। तुम धन के पीछे भाग रहे हो कि धन तुम्हारे पीछे भाग रहा है? तुम पद के पीछे भाग रहे हो कि पद तुम्हारे पीछे भाग रहा है? बंधन मजबूत नहीं है, तुम्हारी वासना मजबूत है। बंधन मजबूत नहीं है, तुम्हारा अज्ञान मजबूत है। बंधन मजबूत नहीं है, तुम्हारी तृष्णा मजबूत है। उसी तृष्णा से 54
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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